Rahat Indori राहत इंदौरी
अब तो हर हाथ का पत्थर हमें पहचानता है
उम्र गुजरी है तिरे शहर में आते जाते
Ab To Har Hath ka Pathar Hamen pahchanta
Hai Umra Gujari hai tere Shahar Mein Aate Jaate
-Rahat Indori
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Rahat Indori |
एक मुलाकात का जादू कि उतरता ही नहीं
तिरी खुशबू मिरी चादर से जाती नहीं जाती है
Ek Mulaqat Ka Jadu ki Utarta Hi Nahin
Teri Khushboo Meri Chadar Se Jati Hi Nahi
-Rahat Indori
हम अपनी जान के दुश्मन को अपनी जान कहते हैं
मोहब्बत की इस मिट्टी को हिंदुस्तान कहते हैं
Hum Apni Jaan Ke Dushman ko Apni Jaan
kehte hain Mohabbat Ki Is Mitti ko Hindustan
-Rahat Indori
शहर क्या देखे कि हर मंजर में छाले पड़ गए
ऐसी गर्मी है कि पीले फूल काले पड़ गए
Shahar kya Dekhen Ki Har Manzar Mein Chhale Pad
Gaye Aisi Garmi hai ki Peele Phool Kale Pad Gaye
-Rahat Indori
कालेज के सब बच्चे चुप हैं कागज की एक नाव के
लिए चारों तरफ़ दरिया की सूरत फैली हुई बेकारी है
College ke Sab Bacche Chup Hai Kagaj ki Ek Naav
Ke Liye Charon Taraf Dariya Ki Surat Faili Hui Bekari hai
-Rahat Indori
सूरज सितारे चांद मिरे साथ में रहे
जब तक तुम्हारे हाथ मिरे हाथ में रहे
Suraj Sitare Chand Mere Sath Mein Rahe
Jab Tak Tumhare Hath Mere Hath rahe
-Rahat Indori
खयाल था कि ये पत्थर रोक दे चल कर
जो होश आया तो देखा लहू लहू हम थे
Khyal Tha ki Ya Pathar Rog De Chalkar
Jo Hosh Aaya to Dekha Lahu Lahu Ham The
-Rahat Indori
मैं आ कर दुश्मनों में बस गया हूं
यहां हमदर्द है दो-चार मेरे
Mein Aakar Dushmanon Mein bus Gaya Hun
Yahan Humdard Hai Do Char mere
-Rahat Indori
रोज पत्थर की हिमायत में ग़ज़ल लिखते हैं
रोज शीशों से कोई काम निकल पड़ता है
Rose Pathar Ki Himayat Mein Ghazal Likhate
Hain Roj Shishu Se Koi kam Nikal Padta h
-Rahat Indori
मजा चखा के ही माना हूं मैं भी दुनिया को
समझ रही थी कि ऐसे ही छोड़ दूंगा उसे
Maja chakha kar hi Mana Hun Main Duniya Ko
Samajh Rahi Thi Kya Aise Hi Chod Dunga Use
-Rahat Indori
मैं ने अपनी खुश्क आंखों से लहू छलका दिया
एक समंदर कह रहा था मुझ को पानी चाहिए
Maine Apni khushk Aankhon Se Lahu Chhalka Diya
Ek Samander Kah Raha Tha Muj ko Pani Chahie.
-Rahat Indori
ये हवाएं उड़ न जाएं ले के काग़ज का बदन
दोस्तों मुझ पर कोई पत्थर जरा भारी रखो
Yah hawayen Ud Na Jaaye Lekar kagaj ka Badan
Doston Muj Per Koi Pathar Jara Bhari Rakho
-Rahat Indori
अब तो हर हाथ का पत्थर हमें पहचानता है
उम्र गुजरी है तिरे शहर में आते जाते
Ab To Har Hath ka Pathar Hamen Pahchanta
Hai Umra Gujari hai tere Shahar Mein Aate Jaate
-Rahat Indori
Rahat Indori Shayari
एक ही नदी के ये दो किनारे दोस्तों
दोस्ताना जिंदगी से मौत से यारी रखो
Ek Hi Nadi Ke Ye to Kinare Doston
Dostana Jindagi se most Yari rakho
-Rahat Indori
मैं पर्वतों से लड़ता रहा और चंद लोग
गीली जमीन खोद के फरहाद हो गए
main parvaton se ladta Raha Chand log
Geli Jameen khodkar Farhad Ho Gaye
-Rahat Indori
घर के बाहर ढूंढता रहता हूं दुनिया
घर के अंदर दुनियादारी रहती है
Ghar Ke Bahar Dhundhta Rahata Hun Duniya
Ghar Ke Andar Duniyadari Rahte Hai
-Rahat Indori
मैं आखिर कौन सा मौसम तुम्हारे नाम कर देता
यहां हर एक मौसम को गुजर जाने की जल्दी थी
Main Aakhir kaun sa Mausam Tumhare Naam kar deta
Yahan Har EK Mausam ko Guzar Jaane Ki Jaldi thi
-Rahat Indori
मेरी ख्वाहिश है कि आंगन में न दीवार उठे
मेरे भाई मेरे हिस्से की ज़मी तू रख ले
Meri Khwahish hai ki Agan Mein Na Deewar Uthe
Mere bhai Mere Hisse Ki Zameen Tu rakh le
-Rahat Indori
बोतलें खोल कर तो पी बरसो
आज दिल खोल कर भी पी जाए
Botal Khol kar pi Barso
Aaj Dil kholkar Bhi pi Jaaye
-Rahat Indori
बीमार को मर्ज की दवा देनी चाहिए
मैं पीना चाहता हूं पिला देनी चाहिए
Bimar ko Marj Ki Dava Deni Chahie
Mein Pina Chahta Hun Pila De Ne Chahie
-Rahat Indori
वो चाहता था कि कासा खरीद ले मेरा
मैं उसके ताज की कीमत लगा के लौट आया
Wah Chahta tha ki kasa khareed le Mera
Main Uske Taj kemat Laga Ke Laut aaya
-Rahat Indori
रोज तारों को नुमाइश में खलल पड़ता है
चांद पागल है अंधेरे में निकल पड़ता है
Rose Taron ki Numaish Mein Khelal Padta Hai
Chand Pagal Hai Andhere Mein Nikal Padta Hai
-Rahat Indori
हमसे पहले भी मुसाफिर कई गुजरे होंगे
कम से कम राह के पत्थर तो हटाते जाते
Ham se pahle bhi Musafir Kai Gujare Honge
Kam Se Kam Raha Ke Pathar to Hate Jatay
-Rahat Indori
नए किरदार आते जा रहे हैं
मगर नाटक पुराना चल रहा है
Nai kirdar Aate Ja Rahe Hain
Nai kirdar Aate Ja Rahe Hain
Magar natak purana chal raha
-Rahat Indori
बहुत गुरूर है दरिया को अपने होने पर
जो मेरी प्यास से उलझे तो धज्जियां उड़ जाएं
Bahut Gurur Hai Dariya ko Apne Hone Par
Jo Meri Pyase Uljhe to Dhajiya ud Jay
आंखों में पानी रखो होठों पर चिंगारी रखो
जिंदा रहना है तो तरकीबें बहुत सारी रखो
Aakho Mein Pani Rakho Hothon Per Chingari Rakho
Jinda Rahana Hai To Tarkibey Bahut Sari Rakho
-Rahat Indori
शाखों से टूट जाएं वह पत्ते नहीं हम
आंधी से कोई कह दे कि औकात में रहे 😍
Shakhon se Tut Jaaye vah Patte Nahin Ham
Aandhi Se Koi kah De ki Aukat Rahe
-Rahat Indori
इशारा कर दे तो सूरज ज़मी पे आन पड़े
सुकूत-ए- जीस्त को आमादा -ए - बगावत कर
लहू उछाल कर कुछ जिंदगी में जान पड़े
हमारे शहर की बिनाईयो पे रोते हैं तमाम
शहर के मंजर लहूलुहान पड़े उठे हैं
हाथ मेरी हुर्मते- ए - जमी के लिए मजा जब आए कि
अब पाव आसमान पड़े किसी मकीन की आमद के
इंतजार में है मेरे मोहल्ले में खाली कई मकान पड़े
दोस्ती जब किसी से की जाए
दुश्मनों की भी राय ली जाए
Dosti Jab Kisi Se Ki Jaaye
Dushmanon Ki Bhi Riley le Jaye
ना हमसफ़र ना किसी हमनशी से निकलेगा
हमारे पांव का कांटा हमीं से निकलेगा
Na Humsafar Na Kisi Hamnashi Se Nikalega
Hamare Pav ka Kata Hami Se Nikley Ga 💔
Rahat Indori Shayari In Hindi
जो यह हर-सू फलक मंजर खड़े हैं
न जाने किस के पैरों पर खड़े हैं
तुला है धूप बरसाने पर सूरज
शजर भी छतरिया ले कर खड़े हैं
उन्हें नामों से मैं पहचानता हूं
मेरे दुश्मन मेरे अंदर खड़े हैं
किसी दिन चांद निकला था यहां से
उजाले आज तक छत पर खड़े हैं
उजाला सा है कुछ कमरों के अंदर
जमी-ओ- आसमा बाहर खड़े हैं
❤️❤️❤️❤️❤️
शाम ने जब पलकों पर आतिश दान लिया
कुछ यादों ने चुटकी में लो बान लिया
दरवाजों ने अपनी आंखें नम कर ली
दीवारों ने अपना सीना तान लिया
प्यास तो अपनी सात समंदर जैसी थी
नाहक हम ने बारिश का एहसास लिया
मैंने तलवों से बांधी थी छाव मगर
शायद मुझ को सूरज ने पहचान
लिया कितने सुख से धरती ओढ़ के सोए हैं
हमने अपनी मां का कहना मान लिया
❤️❤️❤️❤️❤️
मेरे कारोबार में सब ने बड़ी इमदाद की
दाद लोगों की गला अपना ग़ज़ल उस्ताद की
अपनी सांसे बेचकर मैंने जिसे आबाद की
वो गली जन्नत तो अब भी है मगर शद्दाद की
उम्र भर चलते रहे आंखों पर पट्टी बांधकर
जिंदगी को ढूंढने में जिंदगी बर्बाद की
दास्तानो के सभी किरदार कम होने लगे
आज कागज चुनती फिरती परी बगदाद
की एक सुलगता चीखता माहौल है और कुछ नहीं
बात करते हो'यगाना'किस अमीनाबाद की
❤️❤️❤️❤️❤️
साथ मंजिल थी मगर ख़ौफ़-ओ-खतर ऐसा था
उम्र भर चलते रहे लोग सफर ऐसा था
जब वो आए तो मैं खुश हुआ शर्मिंदा भी
मेरी तकदीर थी ऐसी मेरा घर ऐसा था
हिफ़्ज़ थी मुझको भी चेहरो की किताबे क्या-क्या
दिल शिकस्ता था मगर तेज नजर ऐसा था
आग ओढ़े। था मगर बांट रहा था साया
धूप के शहर में एक तन्हा शजर ऐसा था
लोग खुद अपने चिरागों को बुझा कर सोए
शहर में तेज हवाओं का असर ऐसा था
❤️❤️❤️❤️❤️
सर पर सात आकाश जमी पर सात समुदर बिखरे
आंखें छोटी पड़ जाती हैं इतने मंजर बिखरे हैं
जिंदा रहना खेल नहीं है इस आबाद खराबे में
वो अक्सर टूट गया है हम भी अक्सर बिखरे हैं
उस बस्ती के लोगों से जब बातें की तो ये जाना
दुनिया भर को जोड़ने वाले अंदर-अंदर बिखरे हैं
इन रातों से अपना रिश्ता जाने कैसा रिश्ता है
नींद कमरों में जागी है ख्वाब छतों पर बिखरे हैं
आँगन के मासूम से शजर ने एक कहानी लिखी है
इतने फल शाखों पर नहीं थे जितने पत्थर बिखरे हैं
सारी धरती सारे मौसम एक ही जैसे लगते हैं
आंखों आंखों कैद हुए थे मंजर मंजर बिखरे हैं
❤️❤️❤️❤️❤️
सवाल घर नहीं बुनियाद पर उठाया है
हमारे पांव की मिट्टी ने सर उठाया है
हमेशा सर पे रही एक चट्टान रिश्तो की
ये बोझ वो है जिसे उम्र भर उठाया है
मेरे गुलेल के पत्थर का कारनामा था
मगर यह कौन है जिसने समर उठाया है
यही जमी में दबाएगा एक दिन हम को
ये आसमा जिसे दोश पर उठाया है
बुलंदियों को पता चल गया कि फिर मैं ने
हवा का टूटा हुआ एक पर उठाया है
महाबली से बगावत बहुत जरूरी है
कदम ने ये हमने समझ सोचकर उठाया है
❤️❤️❤️❤️❤️
यू सदा देते हुए तेरे ख्याल आते हैं
जैसे काबे की खुली छत पे बिलाल आते हैं
रोज हम अश्कों से धो आते हैं
दीवार ए हरम
पगड़िया रोज फरिश्तों की उछाल आते हैं
हाथ अभी पीछे बंधे रहते हैं चुप रहते हैं
देखना ये है तुझे कितने कलाम आते हैं
चाँद सूरज मेरी चौखट पे कई सदियों से
रोज लिखे हुए चेहरे पर सवाल आते हैं
बे हिसी मुर्दा दिली रक़्स शराबे नगमे
बस इसी राह से कामों पे ज़वाल आते हैं
❤️❤️❤️❤️❤️
जब कभी फूलों ने खुशबू की तिजारत की है
पत्ती पत्ती ने हवाओं से शिकायत की है
यूं लगा जैसे कोई इत्र फ़ज़ा में खुल जाए
जब किसी बच्चे ने कुरान की तिलावत की है
जा नमाज़ों की तरह नूर में उज्लाई सहर
रात भर जैसे फरिश्तों ने इबादत की है
सर उठाए थी बहुत सुख हवा फिर भी
हमने पलकों के चरागों की हिफाज़त की है
मुझे तूफान-ए- हवादिस से डराने वाले
हादसों ने तो मेरे हाथ पर बैअत की है
आज एक दाना-ए-गदुम के हकदार नहीं
हमने सदियों इन्ही खेतों पर हुकूमत की है
यह जरूरी था कि हम देखते किलाओ के जलाल
उम्र भर हमने मजारों की तिजारत की है
❤️❤️❤️❤️❤️
काली रातों को भी रंगीन कहा है मैं ने
तेरी हर बात पर आमीन कहा है मैं ने
तेरी दस्तार पे तनक़ीद की हिम्मत तो नहीं
अपनी पा-पोश को कालीन कहा है मैं ने
मस्लहत कहिए या इसे सियासत कहिए
चिल कौवा को भी शाहीन कहा है मैं ने
ज़ायके बारह आंखों में मजा देते हैं
बाज़ चेहरो को भी नमकीन कहा मैं ने
तूने फंन नहीं शज़र की हिमायत की है
तेरे एज़ाज़ को तोहीन कहां है मैं ने
❤️❤️❤️❤️❤️
पुराने दांव पर हर दिन नए आंसू लगाता है
वह अपनी एक फटे रुमाल पर खुशबू लगाता है
उसे कह दो की ऊंचाईया मुश्किल से मिलती हैं
जो सूरज के सफर में मोम के बाजू लगाता है
मैं काली रात के तेजाब से सूरज बनाता हूं
मेरी चादर पर यह पेवन्द जुगनू लगाता है
यहां लक्ष्मण की रेखा है ना सीता है मगर फिर भी
बहुत फेरे हमारे घर के एक साधु लगाता है
नमाज ए मुस्तकिल पहचान बन जाती है
चेहरे की तिलक जिस तरह माथे पर कोई हिंदू लगाता है
ना जाने ये अनोखा फर्क इस मै किस तरह आया
वो अब तो कालर में फूलों की जगह बिच्छू लगाता है
अंधेरे और उजाले में यह समझौता जरूरी है
निशाने हम लगाते हैं ठिकाने तू लगाता है
❤️❤️❤️❤️❤️
सिर्फ सच और झूठ के मीज़ान में रखे रहे
हम बहादुर थे मगर मैदान में रखे रहे
जुगनूओ ने फिर अंधेरे से लड़ाई जीत ली
चांद सूरज घर के रोशनदान में रखे रहे
धीरे-धीरे सारे किरने खुदकुशी करने लगी
हम सहीफ़ा थे मगर जुज्दान में रखे रहे
बंद कमरे खोलकर सच्चाई या रहने लगी
ख्वाब कच्ची धूप थे दलान में रखे रहे
सिर्फ इतना फासला है जिंदगी से मौत का
शाख से तोड़े गए गुल दान में रखे रहे
जिंदगी भर अपनी गूंगी धड़कनों के साथ-साथ
हम भी घर के कीमती सामान में रखें रहे
❤️❤️❤️❤️❤️
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1 Comments:
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