SAHIR LUDHIANVI KE SHER
तू मुझे छोड़ के ठुकरा के भी जा सकती है
तेरे हाथों में मिरे हाथ है ज़ंज़ीर नहीं
उन के रुखसार पे ढलते हुए आंसू तौबा
मैं ने शबनम को भी शोलों पे मचलते देखा
वैसे तो तुम्हीं ने मुझे बर्बाद किया है
इल्जाम किसी और के सर जाए तो अच्छा
दुनिया ने तजर बात ओ हवादिस की शक्ल
में जो कुछ मुझे दिया है वो लौटा रहा हूं मैं
एक शहंशाह ने दौलत का सहारा लेकर हम
गरीबों की मोहब्बत का उड़ाया है मजाक
हम अम्न चाहते हैं मगर जुल्म के खिलाफ
गर जंग लाज़मी है तो फिर जंग ही सही
जो मिल गया उसी को मुकद्दर समझ लिया
जो खो गया मैं उस को भूलाता चला गया
जब तुम से मोहब्बत की हम ने तब
जा के कहीं ये राज खुला मरने का
सलीका आते ही जीने का शुऊर आ जाता है
यूंही ही दिल ने चाहा था रोना रुलाना
तेरी याद तो बन गई इक बहाना
किस दर्जा दिल शिकान थे मोहब्बत के हादसे
हम जिंदगी मे फिर कोई अरमा न कर सके
SAHIR LUDHIANVI IN HINDI
कोई तो ऐसा घर होता जहां से प्यार मिल
जाता वहीं बेगाने चेहरे जहां जाएं जिधर जाए
उन का ग़म उन का तसव्वूर उन के शिकवे
अब कहां अब तो ये बातें भी ए दिल हो गई आई गई
औरत ने जनम दिया मर्दों को मर्द ने
से बाजार दिया जब जी चाहा मसला
कुचला जब जी चाहा धूत्कार दिया
तुझ को खबर नहीं मगर एक सादा लोहा
को बर्बाद कर दिया तिरे दो दिन के प्यार ने
फिर न कीजे मिरी गुस्ताख निगाही का
गिला देखिए आप ने फिर प्यार से देखा मुझ को
हम जुर्म ए मोहब्बत की सजा पाएंगे
तन्हा जो तुझ से हुई हो खता साथ लिए जा
लो आज हम ने तोड़ दिए रिश्त ए उम्मीद लो
अब कभी गिला न करेंगे किसी से हम
मायूसी ए मआल ए मोहब्बत न पूछिए
अपनों से पेश आए हैं बेगानगी से हम
मेरे ख्वाबों में भी तू मेरे ख्यालों में भी
तू कौन सी चीज तुझे तुझ से जुदा पेश करूं
दिल के मुआमले में नतीजे की फिक्र
क्या आगे हैं इश्क जुर्मो ओ सजा के मकाम से
जान ए तन्हा पे गुजर जाए हजारों सदमे
आँख से अश्क रवा हो ये जरूरी तो नहीं
अब आए या न आए इधर पूछते चलो
क्या चाहती है उनकी नजर पूछते चलो
जंग तो खुद ही एक मसला है
जंग क्या मसलों का हल देगी
तुझे भुला देंगे अपने दिल से ये फैसला तो
किया है लेकिन ना दिल को मालूम है
ना हम को जिएंगे कैसे तुझे भुला के
तुम्हारे अहद ए वफा को मैं अहद क्या समझू
मुझे खुद अपनी मोहब्बत पे ऐतबार नहीं
अंधेरी शब में भी तामीर-ए - आशिया न
रुके नहीं चराग़ तो क्या बर्क तो चमकती है
बस अब तो दामन ए दिल छोड़ दो बेकार उम्मीदो
बहुत दुख सह लिए मैं ने बहुत दिन जी लिया मैं ने
हमी से रंग ए गुलिस्ता हमी से रंग ए बहार
हमी को नज्में ए गुलिस्ता पे इख्तियार नहीं
जज्बात भी हिंदू होते हैं चाहत भी मुसलमा होती है दुनिया
का इशारा था लेकिन समझा न इशारा दिल ही तो है
जुल्म फिर जुल्म है बढ़ता है तो मिट जाता है
खून फिर खून टपकेगा तो जम जाएगा
संसार की हर शय का इतना ही फ़साना है
इक धुंद से आना है इक धुंद में जाना है
वफा शिआर कई है कोई हंसी भी तो हो
चलो फिर आज उसी बेवफा की बात करें
ज़मी ने खून उगला आसमां ने आग बरसाई
जब इंसान के दिल बदले तो इंसानो पे क्या गुजरी
इस रेंगती हयात का कब तक उठाएं
बार बीमार अब उलझने लगे हैं तबीब से
दुल्हन बनी हुई है राहे
जश्न मनाओ साले -ए-नो के
रगों में तेरा अक्स ढंला तू ना ढल सकी
सांसों की आंच जिस्म की खुशबू न ढंल सकी
तरब जारो पे क्या गुजरी सनम खानों पे क्या गुजरी
दिल ए जिंदा मेरे मरहूम अरमानों पर क्या गुजरी
मोहब्बत तर्क कि मैं ने गरेबा सी लिया मैं ने
ज़माने अब तो खुश हो ज़हर ये पी लिया मैं ने
हम से अगर तर्क ए ताल्लुक तो क्या
हुआ यारो कोई तो उन की खबर पूछते चलो
मिरी नदीम मोहब्बत की रिफ़ा'अ से न
गिर बुलंद बाम ए हरम ही नहीं कुछ और भी है
नाला हूं मैं बेदार ए एहसास के हाथों
दुनिया मिरे अफ़्कार की दुनिया नहीं होती
आंखें ही मिलाती है जमाने में दिलों को
अजान है हम तुम अगर अजान है आंखें
हर चंद मिरी क़ुव्वत ए गुफ्तार है महबूस
खामोश मगर तब ए खुद आरा नहीं होती
SAHIR LUDHIANVI QUOTES
ले दे के अपने पास फ़कत एक नजर तो है
क्यों देखे जिंदगी को किसी की नजर से हम
अभी न छेड़ मोहब्बत के गीत ऐ मूतरिब है
मुझे अभी हयात का माहौल खुशगवार नहीं
आप दौलत के तराजू में दिलो को तोले
हम मोहब्बत से मोहब्बत का सिला देते हैं
देखा है जिंदगी को कुछ इतना करीब
से चेहरे तमाम लगने लगे अजीब से
अपनी तबाहियो का मुझे कोई गम नहीं
तुम ने किसी के साथ मोहब्बत निभा तो दी
वो अफ़साना जिसे अंजाम तक लाना न हो मुमकिन
उसे एक खूब सूरत मोड़ दे कर छोड़ना अच्छा है
इस तरह जिंदगी ने दिया है हमारा
साथ जैसे कोई निबाह रहा हो रकीब से
हजार बर्क गिरे लाख आंधिया उठे
वो फूल खिल के रहेंगे जो खिलने वाले हैं
कौन रोता है किसी और की खातिर ऐ
दोस्त सबको अपनी ही किसी बात पर रोना आया
तंग आ चुके हैं कशमकश ए जिंदगी से
हम टूकरा न दे जहां को कहीं बे दिली से हम
हम गम जदा है लाए कहां से खुशी के
गीत देंगे वही जो पाएंगे इस जिंदगी से हम
SAHIR LUDHIANVI HINDI
फिर खो न जाए हम कहीं दुनिया
की भीड़ में मिलती है पास
आने की मोहलत कभी-कभी
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SAHIR LUDHIANVI |
बर्बादियों का शोक मनाना फिजूल था
बर्बादियों का जश्न मनाता चला गया
मैं जिंदगी का साथ निभाता चला गया
हर फिक्र को धुएं में उड़ाता चला गया
हम तो समझे थे कि हम भूल गए उन को क्या
हुआ आज ये किस बात पे रोना आया
माना कि जमी को न गुलजार कर सके
कुछ खार कम तो कर गए गुजरे जिधर से हम
तुम मेरे लिए अब कोई इल्जाम न ढूंढो
चाहा था तुम्हें इक यही इल्जाम बहुत है
गर जिंदगी में मिल गए फिर इतिफाक से
पूछेंगे अपना हाल तेरी बेबसी से हम
चंद कलियां नशात की चुन कर मुद्दातो महव ए यास रहता हूं
तेरा मिलना खुशी की बात सही तुझसे मिलकर उदास रहता हूं
अभी जिंदा हूं लेकिन सोचता रहता हूं खल्वत
में कि अब तक किस तमन्ना के सहारे जी लिया में ने
तुम हुस्न की खुद एक दुनिया हो शायद तुम्हें मालूम
नहीं महफिल में तुम्हारे आने से हर चीज पे नूर आ जाता है
मैं जिसे प्यार का अंदाज समझ बैठा हूं
वह तबस्सुम वो तकल्लुम तिरी आदत ही न हो
फिर खो न जाए हम कहीं दुनिया की भीड़
में मिलती है पास आने की मोहलत कभी-कभी
युहीं दिल ने चाहा था रोना -रुलाना
तिरि याद तो बन गई इक बहाना
जो मिल गया उसी को मुकद्दर समझ लिया
जो खो गया मैं उस को भूलाता चला गया
फिर खो ना जाए हम कहीं दुनिया की भीड़ में
मिलती है पास आने की मोहलत कभी-कभी
इक शहंशाह ने दौलत का सहारा लेकर
हम गरीबों की मोहब्बत का उड़ाया है मजाक
तुम्हारे अहद-ए -वफ़ा को मैं अहद क्या समझूं
मुझे खुद ही अपनी मोहब्बत पे'ए 'तिबार नहीं
ब आए या न आए इधर पूछते चलो
क्या चाहती है उनकी नजरें पूछते चलो
हम से अगर है तर्क़-ए - तअल्लुक़ तो क्या हुआ
यारो कोई तो उन की खबर पूछते चलो
गर जिंदगी में मिल गए फिर इत्तेफाक से
पूछेंगे अपना हाल तेरी बेबसी से हम
कभी खुद पे कभी हालात पे रोना आया
बात निकली तो हर एक बात पे रोना आया
बर्बादियों का सोग मनाना फुजुल था
बर्बादियों का जश्न मनाता चला गया
साहिर लुधियानवी की नज़्म
नहीं किया तो करके देख
तू भी किसी पर मर कर देख
हुस्न के बिखरे फूल से
हुस्न के बिखरे फूल से
दिल की झोली भर के देख
कौन तुझे क्या कहता है
क्यों उसका गम सहता है
कुत्ते भोंकते रहते हैं
काफिला चलता रहता है
कभी अपने मन की कर के देख
रहती रस्में तोड़ भी दे
दिल को अकेला छोड़ भी दे
दुनिया दिल की दुश्मन है
दुनिया का मुंह तोड़ भी दे
कुछ तो अनोखा करके देख
एक रास्ता है दौलत का
दूसरा ऐसो इशरत का
तीसरा झूठी इज्जत
का चौथा उल्फत का
इस रस्ते से गुज़र के दख
साहिर लुधियानवी की नज़्म
मता -ए -ग़ैरमेरे ख्वाबों के झरोखों को सजानेवाली
तेरे ख्वाबों में कहीं मेरा गुजर है कि नहीं
पूछकर अपनी निगाहों से बता दे मुझको
मेरी रातों के मुकद्दर में सहर है कि नहीं (भाग्य )( सुबह )
चार दिन की यह रफ़क़त जो रफ़क़त भी नहीं (साथ)
उम्र भर के लिए आजार हुई जाती है (रोग)
जिंदगी यूं तो हमेशा से परेशान सी थी
अब तो हर साँस गिरा-बार हुई जाती है (बोझिल )
मेरी उजड़ी हुई नींदों के शबिस्तानो में
तू किसी ख्वाब के पैकर की तरह आई है (शरीर)
कभी अपनी सी कभी गैर नजर आती है
कभी इख्लास की मूरत तभी हरजाई है (निस्वार्थ)
प्यार पर बस तो नहीं है मेरा लेकिन फिर भी
तू बता दे कि तू मुझे प्यार करूं या ना करूं
तूने खुद को अपने तबस्सुम से जगाया है जिन्हें (मुस्कुराहट )
उन तंमत्रओ इजहार करूं या ना करूं
तो किसी और के दामन की कली है लेकिन
तेरी रातें मेरी खुशबू से बसी रहती हैं
तू कहीं भी हो तेरे फूल से आरिज़ की कसम (गालों की)
तेरी पलके मेरी आंखों पर झुकी रहती है
तेरे हाथों की हरारत तेरे सांसों की महक (गर्मी )
तैरती रहती है एहसास की पहनाई में
ढूंढती रहती है तखईल की बाँहे तुझको (कल्पना की)
सर्द रातों की सुलगती हुई तन्हाई में
तेरा अल्ताफो करम एक हक़ीक़त है, मगर (कृपा )
ये हक़ीक़त में फंसाना ही न हो (कहानी)
तेरी मानूस निगाहों का ये मोहतात पयाम (आमंत्रण)
दिल के खु करने का एक बहाना ही हो
कौन जाने मिरे ईम्रोज़ का फ़रदा क्या है (आज का ) (कल)
कुर्बतें बढ़के पशेमान हो जाती है ( लज्जित )
दिल के दामन से लिपटती हुई नज़रे
देखते-देखते अनजान भी हो जाती है
मेरी दरमांदा जवानी की तंमत्रओ के ( विवश)
मुज़हिल ख्वाब की ता"बीर बता दे मुझको
तेरे दामन में गुलिस्ता है विराने भी है
मेरा हासिल मेरी तकदीर बता दे मुझको
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