MIRZA GALIB
अब तो घबरा के ये कहते है कि मर जायॅगे मर के भी चैन न पाया तो किधर जायॅगे ?HINDI SHAYARI
पूछते है वो कि 'ग़ालिब' कौन है कोई बतलाओं कि हम बतलाय क्या
ये मसाइले-तसव्बुफ़ ये तेरा बयान 'ग़ालिब' तुझे हम वली समझते जो न बादहख्वार होता
क़र्ज़ की पीते थे और समझते थे कि हाँ रंग लाएंगी हमारी फ़ाक़ामस्ती एक दिन
रंज से खुंगर हुआ इंन्सा तो मिट जाता है रंज मुश्किलें मुझ पर पड़ी इतनी कि आसां हो गई
कब वो सुनता है कहानी मेरी और फिर वो भी जबान मेरी
बुलबुल के कारोबार पे है खंदा -हा -ए -गुल कहते है जिस को इश्क खलल है दिमाग का
सौ बार बंद-ए-इश्क से आज़ाद हम हुए पर क्या करें कि दिल ही अदू है फ़राग़ का
जिस जख्म की हो सकती हो तदबीर रफ़ू की लिख दीजियो या रब उसे किस्मत मै अदू की
बे खुदी बे-सबब नहीं ग़ालिब कुछ तो है जिस की पर्दा-दारी है
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