ALLAMA IQBAL
और भी कर देता है दर्द में इज़ाफ़ा
तेरे होते हुए गैरो का दिलासा देना
अमल से जिंदगी बनती है ,जन्नत भी जहनुम भी
यह कहा की अपनी फितरत मे न नूरी न नारी
इक़रार-ए -मुहब्बत ऐहदे -ए -वफ़ा सब झूटी
सच्ची बाते "इक़बाल " हर शख्स खुदी की
मस्ती में बस अपने खातिर जीता है
सितारों से आगे जहाँ और भी है
तेरे होते हुए गैरो का दिलासा देना
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HINDI SHAYRI |
ख़ुदी को कर बुलंद इतना कि हर तक़दीर से पहले
ख़ुदा बंदे से ख़ुद पूछे बता तेरी रज़ा क्या है
कभी छोड़ी हुई मंज़िल भी याद आती है राही को
खटक सी है जो सीने में ग़म-ए-मंज़िल न बन जाए
अक़्ल अय्यार है सौ भेस बदल लेती है
इश्क़ बेचारा न ज़ाहिद है न मुल्ला न हकीम
अपने मन में डूब कर पा जा सुराग़-ए-ज़ि़ंदगी
तू अगर मेरा नहीं बनता न बन अपना तो बन
भरी बज़्म में राज़ की बात कह दी
बड़ा बे-अदब हूँ सज़ा चाहता हूँ
यक़ीं मोहकम अमल पैहम मोहब्बत फ़ातेह-ए-आलम
जिहाद-ए-ज़िंदगानी में हैं ये मर्दों की शमशीरें
महीने वस्ल के घड़ियों की सूरत उड़ते जाते हैं
मगर घड़ियाँ जुदाई की गुज़रती हैं महीनों में
हुई न आम जहाँ में कभी हुकूमत-ए-इश्क़
सबब ये है कि मोहब्बत ज़माना-साज़ नहीं
जिन्हें मैं ढूँढता था आसमानों में ज़मीनों में
वो निकले मेरे ज़ुल्मत-ख़ाना-ए-दिल के मकीनों में
उमीद-ए-हूर ने सब कुछ सिखा रक्खा है वाइज़ को
ये हज़रत देखने में सीधे-सादे भोले-भाले हैं
मिलेगा मंज़िल-ए-मक़्सूद का उसी को सुराग़
अँधेरी शब में है चीते की आँख जिस का चराग़
सुल्तानी-ए-जम्हूर का आता है ज़माना
जो नक़्श-ए-कुहन तुम को नज़र आए मिटा दो
इश्क़ तिरी इंतिहा इश्क़ मिरी इंतिहा
तू भी अभी ना-तमाम मैं भी अभी ना-तमाम
यूँ तो सय्यद भी हो मिर्ज़ा भी हो अफ़्ग़ान भी हो
तुम सभी कुछ हो बताओ मुसलमान भी हो
ALLAMA IQBAL KE SHAYRI
HINDI SHAYARI |
मैं ना-ख़ुश-ओ-बे-ज़ार हूँ मरमर की सिलों से
मेरे लिए मिट्टी का हरम और बना दो
हैं उक़्दा-कुशा ये ख़ार-ए-सहरा
कम कर गिला-ए-बरहना-पाई
ये है ख़ुलासा-ए-इल्म-ए-क़लंदरी कि हयात
ख़दंग-ए-जस्ता है लेकिन कमाँ से दूर नहीं
यही ज़माना-ए-हाज़िर की काएनात है क्या
दिमाग़ रौशन ओ दिल तीरा ओ निगह बेबाक
तुर्कों का जिस ने दामन हीरों से भर दिया था
मेरा वतन वही है मेरा वतन वही है
ज़माम-ए-कार अगर मज़दूर के हाथों में हो फिर क्या
तरीक़-ए-कोहकन में भी वही हीले हैं परवेज़ी
उसे सुब्ह-ए-अज़ल इंकार की जुरअत हुई क्यूँकर
मुझे मालूम क्या वो राज़-दाँ तेरा है या मेरा
मिरे जुनूँ ने ज़माने को ख़ूब पहचाना
वो पैरहन मुझे बख़्शा कि पारा पारा नहीं
चमन-ज़ार-ए-मोहब्ब्बत में ख़मोशी मौत है बुलबुल
यहाँ की ज़िंदगी पाबंदी-ए-रस्म-ए-फ़ुग़ाँ तक है
उट्ठो मिरी दुनिया के ग़रीबों को जगा दो
काख़-ए-उमारा के दर-ओ-दीवार हिला दो
जन्नत की ज़िंदगी है जिस की फ़ज़ा में जीना
मेरा वतन वही है मेरा वतन वही है
पास था नाकामी-ए-सय्याद का ऐ हम-सफ़ीर
वर्ना मैं और उड़ के आता एक दाने के लिए
फ़ितरत को ख़िरद के रू-ब-रू कर
तस्ख़ीर-ए-मक़ाम-ए-रंग-ओ-बू कर
गेसू-ए-ताबदार को और भी ताबदार कर
होश ओ ख़िरद शिकार कर क़ल्ब ओ नज़र शिकार कर
ALLAMA IQBAL SHAYARI IN HINDI
ऋषी के फ़ाक़ों से टूटा न बरहमन का तिलिस्म
असा न हो तो कलीमी है कार-ए-बे-बुनियाद
एक सरमस्ती ओ हैरत है सरापा तारीक
एक सरमस्ती ओ हैरत है तमाम आगाही
हकीम ओ आरिफ़ ओ सूफ़ी तमाम मस्त-ए-ज़ुहूर
किसे ख़बर कि तजल्ली है ऐन-ए-मस्तूरी
कमाल-ए-जोश-ए-जुनूँ में रहा मैं गर्म-ए-तवाफ़
ख़ुदा का शुक्र सलामत रहा हरम का ग़िलाफ़
किसे ख़बर कि सफ़ीने डुबो चुकी कितने
फ़क़ीह ओ सूफ़ी ओ शाइर की ना-ख़ुश-अंदेशी
अज़ाब-ए-दानिश-ए-हाज़िर से बा-ख़बर हूँ मैं
कि मैं इस आग में डाला गया हूँ मिस्ल-ए-ख़लील
पुराने हैं ये सितारे फ़लक भी फ़र्सूदा
जहाँ वो चाहिए मुझ को कि हो अभी नौ-ख़ेज़
निगाह-ए-इश्क़ दिल-ए-ज़िंदा की तलाश में है
शिकार-ए-मुर्दा सज़ा-वार-ए-शाहबाज़ नहीं
मुरीद-ए-सादा तो रो रो के हो गया ताइब
ख़ुदा करे कि मिले शैख़ को भी ये तौफ़ीक़
ज़िंदगानी की हक़ीक़त कोहकन के दिल से पूछ
जू-ए-शीर ओ तेशा ओ संग-ए-गिराँ है ज़िंदगी
अगर हंगामा-हा-ए-शौक़ से है ला-मकाँ ख़ाली
ख़ता किस की है या रब ला-मकाँ तेरा है या मेरा
तू है मुहीत-ए-बे-कराँ मैं हूँ ज़रा सी आबजू
या मुझे हम-कनार कर या मुझे बे-कनार कर
गुलज़ार-ए-हस्त-ओ-बूद न बेगाना-वार देख
है देखने की चीज़ इसे बार बार देख
ALLAMA IQBAL BEST POETRY
मक़ाम-ए-शौक़ तिरे क़ुदसियों के बस का नहीं
उन्हीं का काम है ये जिन के हौसले हैं ज़ियाद
नहीं इस खुली फ़ज़ा में कोई गोशा-ए-फ़राग़त
ये जहाँ अजब जहाँ है न क़फ़स न आशियाना
मोहब्बत के लिए दिल ढूँढ कोई टूटने वाला
ये वो मय है जिसे रखते हैं नाज़ुक आबगीनों में
ज़मीर-ए-लाला मय-ए-लाल से हुआ लबरेज़
इशारा पाते ही सूफ़ी ने तोड़ दी परहेज़
मिरी निगाह में वो रिंद ही नहीं साक़ी
जो होशियारी ओ मस्ती में इम्तियाज़ करे
हवा हो ऐसी कि हिन्दोस्ताँ से ऐ 'इक़बाल'
उड़ा के मुझ को ग़ुबार-ए-रह-ए-हिजाज़ करे
इसी ख़ता से इताब-ए-मुलूक है मुझ पर
कि जानता हूँ मआल-ए-सिकंदरी क्या है
मैं तुझ को बताता हूँ तक़दीर-ए-उमम क्या है
शमशीर-ओ-सिनाँ अव्वल ताऊस-ओ-रुबाब आख़िर
ALLAMA IQBAL BEST SHAYRAI
मोती समझ के शान-ए-करीमी ने चुन लिए
क़तरे जो थे मिरे अरक़-ए-इंफ़िआ'ल के
वो हर्फ़-ए-राज़ कि मुझ को सिखा गया है जुनूँ
ख़ुदा मुझे नफ़स-ए-जिबरईल दे तो कहूँ
रोज़-ए-हिसाब जब मिरा पेश हो दफ़्तर-ए-अमल
आप भी शर्मसार हो मुझ को भी शर्मसार कर
समुंदर से मिले प्यासे को शबनम
बख़ीली है ये रज़्ज़ाक़ी नहीं है
मन की दौलत हाथ आती है तो फिर जाती नहीं
तन की दौलत छाँव है आता है धन जाता है धन
गुज़र जा अक़्ल से आगे कि ये नूर
चराग़-ए-राह है मंज़िल नहीं है!
ख़ुदी वो बहर है जिस का कोई किनारा नहीं
तू आबजू इसे समझा अगर तो चारा नहीं
सितारा क्या मिरी तक़दीर की ख़बर देगा
वो ख़ुद फ़राख़ी-ए-अफ़्लाक में है ख़्वार ओ ज़ुबूँ
20 BEST ALLAMA IQBAL SHAYRAI IN URDU &HINDI
ज़माना अक़्ल को समझा हुआ है मिशअल-ए-राह
किसे ख़बर कि जुनूँ भी है साहिब-ए-इदराक
हाँ दिखा दे ऐ तसव्वुर फिर वो सुब्ह ओ शाम तू
दौड़ पीछे की तरफ़ ऐ गर्दिश-ए-अय्याम तू
सबक़ मिला है ये मेराज-ए-मुस्तफ़ा से मुझे
कि आलम-ए-बशरीयत की ज़द में है गर्दूं
कुशादा दस्त-ए-करम जब वो बे-नियाज़ करे
नियाज़-मंद न क्यूँ आजिज़ी पे नाज़ करे
जलाल-ए-पादशाही हो कि जमहूरी तमाशा हो
जुदा हो दीं सियासत से तो रह जाती है चंगेज़ी
ये काएनात अभी ना-तमाम है शायद
कि आ रही है दमादम सदा-ए-कुन-फ़यकूँ
हुए मदफ़ून-ए-दरिया ज़ेर-ए-दरिया तैरने वाले
तमांचे मौज के खाते थे जो बन कर गुहर निकले
ख़ुदावंदा ये तेरे सादा-दिल बंदे किधर जाएँ
कि दरवेशी भी अय्यारी है सुल्तानी भी अय्यारी
'अत्तार' हो 'रूमी' हो 'राज़ी' हो 'ग़ज़ाली' हो
कुछ हाथ नहीं आता बे-आह-ए-सहर-गाही
कभी ऐ हक़ीक़त-ए-मुंतज़र नज़र आ लिबास-ए-मजाज़ में
कि हज़ारों सज्दे तड़प रहे हैं मिरी जबीन-ए-नियाज़ में
ALLAMA IQBAL 2 LINE SHAYARI
बे-ख़तर कूद पड़ा आतिश-ए-नमरूद में इश्क़
अक़्ल है महव-ए-तमाशा-ए-लब-ए-बाम अभी
तू क़ादिर ओ आदिल है मगर तेरे जहाँ में
हैं तल्ख़ बहुत बंदा-ए-मज़दूर के औक़ात
इश्क़ तिरी इंतिहा इश्क़ मिरी इंतिहा
तू भी अभी ना-तमाम मैं भी अभी ना-तमाम
तुझे किताब से मुमकिन नहीं फ़राग़ कि तू
किताब-ख़्वाँ है मगर साहिब-ए-किताब नहीं
फ़िर्क़ा-बंदी है कहीं और कहीं ज़ातें हैं
क्या ज़माने में पनपने की यही बातें हैं
गला तो घोंट दिया अहल-ए-मदरसा ने तिरा
कहाँ से आए सदा ला इलाह इल-लल्लाह
ज़ाहिर की आँख से न तमाशा करे कोई
हो देखना तो दीदा-ए-दिल वा करे कोई
वजूद-ए-ज़न से है तस्वीर-ए-काएनात में रंग
इसी के साज़ से है ज़िंदगी का सोज़-ए-दरूँ
जो मैं सर-ब-सज्दा हुआ कभी तो ज़मीं से आने लगी सदा
तिरा दिल तो है सनम-आश्ना तुझे क्या मिलेगा नमाज़ में
जब इश्क़ सिखाता है आदाब-ए-ख़ुद-आगाही
खुलते हैं ग़ुलामों पर असरार-ए-शहंशाही
ये जन्नत मुबारक रहे ज़ाहिदों को
कि मैं आप का सामना चाहता हूँ
उरूज-ए-आदम-ए-ख़ाकी से अंजुम सहमे जाते हैं
कि ये टूटा हुआ तारा मह-ए-कामिल न बन जाए
सौदा-गरी नहीं ये इबादत ख़ुदा की है
ऐ बे-ख़बर जज़ा की तमन्ना भी छोड़ दे
आँख जो कुछ देखती है लब पे आ सकता नहीं
महव-ए-हैरत हूँ कि दुनिया क्या से क्या हो जाएगी
ALLAMA IQBAL SHAYARI ON LOVE
अंदाज़-ए-बयाँ गरचे बहुत शोख़ नहीं है
शायद कि उतर जाए तिरे दिल में मिरी बात
न पूछो मुझ से लज़्ज़त ख़ानमाँ-बर्बाद रहने की
नशेमन सैकड़ों मैं ने बना कर फूँक डाले हैं
निगह बुलंद सुख़न दिल-नवाज़ जाँ पुर-सोज़
यही है रख़्त-ए-सफ़र मीर-ए-कारवाँ के लिए
तेरा इमाम बे-हुज़ूर तेरी नमाज़ बे-सुरूर
ऐसी नमाज़ से गुज़र ऐसे इमाम से गुज़र
कभी हम से कभी ग़ैरों से शनासाई है
बात कहने की नहीं तू भी तो हरजाई है
मुझे रोकेगा तू ऐ नाख़ुदा क्या ग़र्क़ होने से
कि जिन को डूबना है डूब जाते हैं सफ़ीनों में
आईन-ए-जवाँ-मर्दां हक़-गोई ओ बे-बाकी
अल्लाह के शेरों को आती नहीं रूबाही
तू ने ये क्या ग़ज़ब किया मुझ को भी फ़ाश कर दिया
मैं ही तो एक राज़ था सीना-ए-काएनात में
नहीं है ना-उमीद 'इक़बाल' अपनी किश्त-ए-वीराँ से
ज़रा नम हो तो ये मिट्टी बहुत ज़रख़ेज़ है साक़ी
बुतों से तुझ को उमीदें ख़ुदा से नौमीदी
मुझे बता तो सही और काफ़िरी क्या है
अनोखी वज़्अ' है सारे ज़माने से निराले हैं
ये आशिक़ कौन सी बस्ती के या-रब रहने वाले हैं
ALLAMA IQBAL BEST URDU SHAYRAI IN INDIA
अक़्ल को तन्क़ीद से फ़ुर्सत नहीं
इश्क़ पर आमाल की बुनियाद रख
वतन की फ़िक्र कर नादाँ मुसीबत आने वाली है
तिरी बर्बादियों के मशवरे हैं आसमानों में
उक़ाबी रूह जब बेदार होती है जवानों में
नज़र आती है उन को अपनी मंज़िल आसमानों में
इश्क़ भी हो हिजाब में हुस्न भी हो हिजाब में
या तो ख़ुद आश्कार हो या मुझे आश्कार कर
मस्जिद तो बना दी शब भर में ईमाँ की हरारत वालों ने
मन अपना पुराना पापी है बरसों में नमाज़ी बन न सका
बातिल से दबने वाले ऐ आसमाँ नहीं हम
सौ बार कर चुका है तू इम्तिहाँ हमारा
ढूँडता फिरता हूँ मैं 'इक़बाल' अपने आप को
आप ही गोया मुसाफ़िर आप ही मंज़िल हूँ मैं
तमन्ना दर्द-ए-दिल की हो तो कर ख़िदमत फ़क़ीरों की
नहीं मिलता ये गौहर बादशाहों के ख़ज़ीनों में
अमल से ज़िंदगी बनती है जन्नत भी जहन्नम भी
ये ख़ाकी अपनी फ़ितरत में न नूरी है न नारी है
न समझोगे तो मिट जाओगे ऐ हिन्दोस्ताँ वालो
तुम्हारी दास्ताँ तक भी न होगी दास्तानों में
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ALLAMA IQBAL NAZM
मेरा वतन वही है
चिश्ती ने जिस ज़मीं पे पैग़ामे हक़ सुनाया,
नानक ने जिस चमन में बदहत का गीत गाया,
तातारियों ने जिसको अपना वतन बनाया,
जिसने हेजाजियों से दश्ते अरब छुड़ाया,
मेरा वतन वही है, मेरा वतन वही है॥
सारे जहाँ को जिसने इल्मो-हुनर दिया था,
यूनानियों को जिसने हैरान कर दिया था,
मिट्टी को जिसकी हक़ ने ज़र का असर दिया था
तुर्कों का जिसने दामन हीरों से भर दिया था,
मेरा वतन वही है, मेरा वतन वही है॥
टूटे थे जो सितारे फ़ारस के आसमां से,
फिर ताब दे के जिसने चमकाए कहकशां से,
बदहत की लय सुनी थी दुनिया ने जिस मकां से,
मीरे-अरब को आई ठण्डी हवा जहाँ से,
मेरा वतन वही है, मेरा वतन वही है॥
बंदे किलीम जिसके, परबत जहाँ के सीना,
नूहे-नबी का ठहरा, आकर जहाँ सफ़ीना,
रफ़अत है जिस ज़मीं को, बामे-फलक़ का ज़ीना,
जन्नत की ज़िन्दगी है, जिसकी फ़िज़ा में जीना,
मेरा वतन वही है, मेरा वतन वही है॥
गौतम का जो वतन है, जापान का हरम है,
ईसा के आशिक़ों को मिस्ले-यरूशलम है,
मदफ़ून जिस ज़मीं में इस्लाम का हरम है,
हर फूल जिस चमन का, फिरदौस है, इरम है,
मेरा वतन वही है, मेरा वतन वही है॥
❤️❤️❤️❤️❤️
ज़मिस्तानी हवा में गरचे थी शमशीर की तेज़ी
ज़मिस्तानी हवा में गरचे थी शमशीर की तेज़ी
न छूटे मुझ से लंदन में भी आदाब-ए-सहर-ख़ेज़ी
कहीं सरमाया-ए-महफ़िल थी मेरी गर्म-गुफ़्तारी
कहीं सब को परेशाँ कर गई मेरी कम-आमेज़ी
ज़माम-ए-कार अगर मज़दूर के हाथों में हो फिर क्या
तरीक़-ए-कोहकन में भी वही हीले हैं परवेज़ी
जलाल-ए-पादशाही हो के जमहूरी तमाशा हो
जुदा हो दीं सियासत से तो रह जाती है चंगेज़ी
सवाद-ए-रौमत-उल-कुबरा में दिल्ली याद आती है
वही इबरत वही अज़मत वही शान-ए-दिल-आवेज़ी
❤️❤️❤️❤️❤️
ALLAMA IQBAL SHAYRAI FOR STUDENT
वो हर्फ़-ए-राज़ के मुझ को सिखा गया है जुनूँ
वो हर्फ़-ए-राज़ के मुझ को सिखा गया है जुनूँ
ख़ुदा मुझे नफ़स-ए-जिब्रईल दे तो कहूँ
सितारा क्या मेरी तक़दीर की ख़बर देगा
वो ख़ुद फ़राख़ी-ए-अफ़लाक में है ख़्वार ओ ज़ुबूँ
हयात क्या है ख़याल ओ नज़र की मजज़ूबी
ख़ुदी की मौत है अँदेशा-हा-ए-गूना-गूँ
अजब मज़ा है मुझे लज़्ज़त-ए-ख़ुदी दे कर
वो चाहते हैं के मैं अपने आप में न रहूँ
ज़मीर-ए-पाक ओ निगाह-ए-बुलंद ओ मस्ती-ए-शौक़
न माल-ओ-दौलत-ए-क़ारूँ न फ़िक्र-ए-अफ़लातूँ
सबक़ मिला है ये मेराज-ए-मुस्तफ़ा से मुझे
के आलम-ए-बशरीयत की ज़द में है गरदूँ
ये काएनात अभी ना-तमाम है शायद
के आ रही है दमादम सदा-ए-कुन-फ़यकूँ
इलाज आतिश-ए-'रूमी' के सोज़ में है तेरा
तेरी खि़रद पे है ग़ालिब फ़रंगियों का फ़ुसूँ
उसी के फ़ैज़ से मेरी निगाह है रौशन
उसी के फ़ैज़ से मेरे सुबू में है जेहूँ
❤️❤️❤️❤️❤️
वहीं मेरी कम-नसीबी वही तेरी बे-नियाज़ी
वहीं मेरी कम-नसीबी वही तेरी बे-नियाज़ी
मेरे काम कुछ न आया ये कमाल-ए-नै-नवाज़ी
मैं कहाँ हूँ तू कहाँ है ये मकाँ के ला-मकाँ है
ये जहाँ मेरा जहाँ है के तेरी करिश्मा-साज़ी
इसी कशमकश में गुज़रीं मेरी ज़िंदगी की रातें
कभी सोज़-ओ-साज़-ए-'रूमी' कभी पेच-ओ-ताब-ए-'राज़ी'
वो फ़रेब-ख़ुर्दा शाहीं के पला हो करगसों में
उसे क्या ख़बर के क्या है रह-ओ-रस्म-ए-शाहबाज़ी
न ज़बाँ कोई ग़ज़ल की न ज़बाँ से बा-ख़बर मैं
कोई दिल-ए-कुशा सदा हो अजमी हो या के ताज़ी
नहीं फ़क़्र ओ सल्तनत में कोई इम्तियाज़ ऐसा
ये सिपह की तेग़-बाज़ी वो निगह की तेग़-बाज़ी
कोई कारवाँ से टूटा कोई बद-गुमाँ हरम से
के अमीर-ए-कारवाँ में नहीं ख़ू-ए-दिल-नवाज़ी
❤️❤️❤️❤️❤️
तू ऐ असीर-ए-मकाँ ला-मकाँ से दूर नहीं
तू ऐ असीर-ए-मकाँ ला-मकाँ से दूर नहीं
वो जलवा-गाह तेरे ख़ाक-दाँ से दूर नहीं
वो मर्ग़-ज़ार के बीम-ए-ख़िज़ाँ नहीं जिस में
ग़मीं न हो के तेरे आशियाँ से दूर नहीं
ये है ख़ुलासा-ए-इल्म-ए-क़लंदरी के हयात
ख़दंग-ए-जस्ता है लेकिन कमाँ से दूर नहीं
फ़ज़ा तेरी मह ओ परवीं से है ज़रा आगे
कहे न राह-नुमा से के छोड़ दे मुझ को
ये बात राह-रव-ए-नुक्ता-दाँ से दूर नहीं
❤️❤️❤️❤️❤️
परेशाँ हो के मेरी ख़ाक आख़िर दिल न बन जाए
परेशाँ हो के मेरी ख़ाक आख़िर दिल न बन जाए
जो मुश्किल अब है या रब फिर वही मुश्किल न बन जाए
न कर दें मुझ को मजबूर-ए-नवाँ फ़िर्दौस में हूरें
मेरा सोज़-ए-दुरूँ फिर गर्मी-ए-महफ़िल न बन जाए
कभी छोड़ी हुई मंज़िल भी याद आती है राही को
खटक सी है जो सीने में ग़म-ए-मंज़िल न बन जाए
बनाया इश्क़ ने दरिया-ए-ना-पैदा-कराँ मुझ को
ये मेरी ख़ुद-निगह-दारी मेरा साहिल न बन जाए
कहीं इस आलम-ए-बे-रंग-ओ-बू में भी तलब मेरी
वही अफ़साना-ए-दुंबाला-ए-महमिल न बन जाए
उरूज-ए-आदम-ए-ख़ाकी से अंजुम सहमे जाते हैं
के ये टूटा हुआ तारा मह-ए-कामिल न बन जाए
❤️❤️❤️❤️❤️
न तख़्त ओ ताज में ने लश्कर ओ सिपाह
न तख़्त ओ ताज में ने लश्कर ओ सिपाह में है
जो बात मर्द-ए-क़लंदर की बार-गाह में है
सनम-कदा है जहाँ और मर्द-ए-हक़ है ख़लील
ये नुकता वो है के पोशीदा ला-इलाह में है
वही जहाँ है तेरा जिस को तू करे पैदा
ये संग ओ ख़िश्त नहीं जो तेरी निगाह में है
मह ओ सितारा से आगे मक़ाम है जिस का
वो मुश्त-ए-ख़ाक अभी आवारगान-ए-राह में है
ख़बर मिली है ख़ुदायान-ए-बहर-ओ-बर से मुझे
फ़रंग रह-गुज़र-ए-सैल-ए-बे-पनाह में हैं
तलाश उस की फ़ज़ाओं में कर नसीब अपना
जहान-ए-ताज़ा मेरी आह-ए-सुब्ह-गाह में है
मेरे कदू को ग़नीमत समझ के बादा-ए-नाब
न मदरसे में है बाक़ी न ख़ानक़ाह में है
मेरी नवा-ए-शौक़ से शोर हरीम-ए-ज़ात में
मेरी नवा-ए-शौक़ से शोर हरीम-ए-ज़ात में
ग़ुलग़ुला-हा-ए-अल-अमाँ बुत-कदा-ए-सिफ़ात में
हूर ओ फ़रिश्ता हैं असीर मेरे तख़य्युलात में
मेरी निगाह से ख़लल तेरी तजल्लियात में
गरचे है मेरी जुस्तुजू दैर ओ हरम की नक़्श-बंद
मेरी फ़ुग़ाँ से रुस्तख़ेज़ काबा ओ सोमनात में
गाह मेरी निगाह-ए-तेज़ चीर गई दिल-ए-वजूद
गाह उलझ के रह गई मेरे तवह्हुमात में
तू ने ये क्या ग़ज़ब किया मुझ को भी फ़ाश कर दिया
मैं ही तो एक राज़ था सीना-ए-काएनात में
❤️❤️❤️❤️❤️
मकतबों में कहीं रानाई-ए-अफ़कार भी है
मकतबों में कहीं रानाई-ए-अफ़कार भी है
ख़ानक़ाहों में कहीं लज़्ज़त-ए-असरार भी है
मंज़िल-ए-रह-रवाँ दूर भी दुश्वार भी है
कोई इस क़ाफ़िले में क़ाफ़िला-सालार भी है
बढ़ के ख़ैबर से है ये मारका-ए-दीन-ओ-वतन
इस ज़माने में कोई हैदर-ए-कर्रार भी है
इल्म की हद से परे बंदा-ए-मोमिन के लिए
लज़्ज़त-ए-शौक़ भी है नेमत-ए-दीदार भी है
पीर-ए-मै-ख़ाना ये कहता है के ऐवान-ए-फ़रंग
सुस्त-बुनियाद भी है आईना-दीवार भी है
ख़ुदी की शोख़ी ओ तुंदी में किब्र ओ नाज़ नहीं
ख़ुदी की शोख़ी ओ तुंदी में किब्र ओ नाज़ नहीं
जे नाज़ हो भी तो बे-लज़्ज़त-ए-नियाज नहीं
निगाह-ए-इश्क़ दिल-ए-ज़िंदा की तलाश में है
शिकार-ए-मुर्दा साज़-वार-ए-शहबाज़ नहीं
मेरी नवा में नहीं है अदा-ए-महबूबी
के बाँग-ए-सूर-ए-सराफ़ील दिल-नवाज़ नहीं
सवाल-ए-मै न करूँ साक़ी-ए-फ़रंग से मैं
के ये तरीक़ा-ए-रिंदान-ए-पाक-बाज़ नहीं
हुई न आम जहाँ में कभी हुकूमत-ए-इश्क़
सबब ये है के मोहब्बत ज़माना-साज़ नहीं
इक इज़्तिराब मुसलसल ग़याब हो के हुज़ूर
मैं ख़ुद कहूँ तो मेरी दास्ताँ दराज़ नहीं
अगर हो ज़ौक़ तो ख़लवत में पढ़ ज़ुबूर-ए-अजम
फ़ुग़ान-ए-नीम-शबी बे-नवा-ए-राज़ नहीं
❤️❤️❤️❤️❤️
हादसा वो जो अभी पर्दा-ए-अफ़लाक में है
हादसा वो जो अभी पर्दा-ए-अफ़लाक में है
अक्स उस का मेरे आईना-ए-इदराक में है
न सितारे में है ने गर्दिश-ए-अफ़लाक में है
तेरी तक़दीर मेरे नाला-ए-बे-बाक में है
या मेरी आह में ही कोई शरर ज़िंदा नहीं
या ज़रा नम अभी तेरे ख़स ओ ख़ाशाक में है
क्या अजब मेरी नवा-हा-ए-सहर-गाही से
ज़िंदा हो जाए वो आतिश जो तेरी ख़ाक में है
तोड़ डालेगी यही ख़ाक तिलिस्म-ए-शब-ओ-रोज़
गरचे उलझी हुई तक़दीर के पेचाक में है
❤️❤️❤️❤️❤️
फ़ितरत को ख़िरद के रू-ब-रू कर
फ़ितरत को ख़िरद के रू-ब-रू कर
तस्ख़ीर-ए-मक़ाम-ए-रंग-ओ-बू कर
तू अपनी ख़ुदी को खो चुका है
खोई हुई शै की जुस्तुजू कर
तारों की फ़ज़ा है बे-कराना
तू भी ये मक़ाम-ए-आरज़ू कर
उरियाँ हैं तेरे चमन की हूरें
चाक-ए-गुल-ओ-लाला को रफ़ू कर
बे-ज़ौक़ नहीं अगरचे फ़ितरत
जो उस से न हो सका वो तू कर
❤️❤️❤️❤️❤️
दिल सोज़ से ख़ाली है निगह पाक नहीं है
दिल सोज़ से ख़ाली है निगह पाक नहीं है
फिर इस में अजब क्या के तू बे-बाक नहीं है
है ज़ौक़-ए-तजल्ली भी इसी ख़ाक में पिंहाँ
ग़ाफ़िल तू निरा साहिब-ए-इदराक नहीं है
वो आँख के है सुर्मा-ए-अफ़रंग से रौशन
पुर-कार ओ सुख़न-साज़ है नम-नाक नहीं है
क्या सूफ़ी ओ मुल्ला को ख़बर मेरे जुनूँ की
उन का सर-ए-दामन भी अभी चाक नहीं है
कब तक रहे महकूमी-ए-अंजुम में मेरी ख़ाक
या मैं नहीं या गर्दिश-ए-अफ़लाक नहीं है
बिजली हूँ नज़र कोह ओ बयाबाँ पे है मेरी
मेरे लिए शायाँ ख़स ओ ख़ाशाक नहीं है
आलम है फ़क़त मोमिन-ए-जाँबाज़ की मीरास
मोमिन नहीं जो साहिब-ए-लौलाक नहीं है
❤️❤️❤️❤️❤️
अपनी जौलाँ-गाह ज़ेर-ए-आसमाँ समझा
अपनी जौलाँ-गाह ज़ेर-ए-आसमाँ समझा था मैं
आब ओ गिल के खेल को अपना जहाँ समझा था मैं
बे-हिजाबी से तेरी टूटा निगाहों का तिलिस्म
इक रिदा-ए-नील-गूँ को आसमाँ समझा था मैं
कारवाँ थक कर फ़ज़ा के पेच-ओ-ख़म में रह गया
मेहर ओ माह ओ मुश्तरी को हम-इनाँ समझा था मैं
इश्क़ की इक जस्त ने तय कर दिया क़िस्सा तमाम
इस ज़मीन ओ आसमाँ को बेकराँ समझा था मैं
कह गईं राज़-ए-मोहब्बत पर्दा-दारी-हा-ए-शौक़
थी फ़ुग़ाँ वो भी जिसे ज़ब्त-ए-फ़ुग़ाँ समझा था मैं
थी किसी दरमांदा रह-रौ की सदा-ए-दर्दनाक
जिस को आवाज़-ए-रहिल-ए-कारवाँ समझा था मैं
❤️❤️❤️❤️❤️
लहू
अगर लहू है बदन में तो ख़ौफ़ है न हिरास
अगर लहू है बदन में तो दिल है बे-वसवास
जिसे मिला ये मताए-ए-गराँ बहा[4] उसको
नसीमो-ज़र से मुहब्बत है, नै ग़मे-इफ़्लास
❤️❤️❤️❤️❤️
मेरी निगाह में है मोजज़ात की दुनिया
मेरी निगाह में है मोजज़ात की दुनिया
मेरी निगाह में है हादिसात की दुनिया
तख़ैयुलात[3] की दुनिया ग़रीब है लेकिन
ग़रीबतर है हयातो-मुमात की दुनिया
अजब नहीं कि बदल दे तुझे निगाह तेरी
बुला रही है तुझे मुमकिनात की दुनिया
❤️❤️❤️❤️❤️
जुदाई
सूरज बुनता है तारे ज़र से
दुनिया के लिए रिदाए-नूरी
आलम है ख़ामोश-ओ-मस्त गोया
हर शय की नसीब है हुज़ूरी
दरिया कोहसार चाँद- तारे
क्या जानें फ़िराक़ो-नासुबूरी
शायाँ है मुझे ग़मे-जुदाई
यह ख़ाक है मरहमे-जुदाई
❤️❤️❤️❤️❤️
चमने-ख़ार-ख़ार है दुनिया
चमने-ख़ार-ख़ार है दुनिया
ख़ूने-सद नौबहार है दुनिया
जान लेती है जुस्तजू इसकी
दौलते-ज़ेरे-मार है दुनिया
ज़िन्दगी नाम रख दिया किसने
मौत का इंतज़ार है दुनिया
ख़ून रोता है शौक़ मंज़िल का
रहज़ने-रहगुज़ार है दुनिया
❤️❤️❤️❤️❤️
सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा
सारे जहाँ से अच्छा, हिन्दोस्ताँ हमारा
हम बुलबुलें हैं इसकी, यह गुलिस्ताँ हमारा
ग़ुरबत में हों अगर हम, रहता है दिल वतन में
समझो वहीं हमें भी, दिल हो जहाँ हमारा
परबत वो सबसे ऊँचा, हमसाया आसमाँ का
वो संतरी हमारा, वो पासबाँ हमारा
गोदी में खेलती हैं, जिसकी हज़ारों नदियाँ
गुलशन है जिसके दम से, रश्क-ए-जिनाँ हमारा
ऐ आब-ए-रूद-ए-गंगा! वो दिन है याद तुझको
उतरा तेरे किनारे, जब कारवाँ हमारा
मज़हब नहीं सिखाता, आपस में बैर रखना
हिन्दी हैं हम, वतन है हिन्दोस्ताँ हमारा
यूनान-ओ-मिस्र-ओ- रोमा, सब मिट गए जहाँ से
अब तक मगर है बाकी, नाम-ओ-निशाँ हमारा
कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी
सदियों रहा है दुश्मन, दौर-ए-जहाँ हमारा
'इक़बाल' कोई महरम, अपना नहीं जहाँ में
मालूम क्या किसी को, दर्द-ए-निहाँ हमारा
सारे जहाँ से अच्छा, हिन्दोस्ताँ हमारा
हम बुलबुलें हैं इसकी, यह गुलिसताँ हमारा
❤️❤️❤️❤️❤️
ये पयाम दे गई है मुझे
ये पयाम दे गई है मुझे बादे- सुबहशाही
कि ख़ुदी के आरिफ़ों का है मक़ाम पादशाही
तेरी ज़िंदगी इसी से, तेरी आबरू इसी से
जो रही ख़ुदी तो शाही, न रही तो रूसियाही
न दिया निशाने-मंज़िल, मुझे ऎ हकीम तूने
मुझे क्या गिलस हो तुझ्से, तू न रहनशीं न राही
शब्दार्थ :
बादे- सुबहशाही= सुबह की हवा; आरिफ़= परिचित; रूसियाही=मुँह पर कालिख; हकीम=दार्शनिक; रहनशीं= सड़क के किनारे डेरा डालने वाले
❤️❤️❤️❤️❤️
मुझे आहो-फ़ुगाने-नीमशब का
मुझे आह-ओ-फ़ुग़ान-ए-नीम-शब का फिर पयाम आया
थम ऐ रह-रौ के शायद फिर कोई मुश्किल मक़ाम आया
ज़रा तक़दीर की गहराइयों में डूब जा तू भी
के इस जंगाह से मैं बन के तेग़-ए-बे-नियाम आया
ये मिसरा लिख दिया किस शोख़ ने मेहराब-ए-मस्जिद पर
ये नादाँ गिर गए सजदों में जब वक़्त-ए-क़याम आया
चल ऐ मेरी ग़रीबी का तमाशा देखने वाले
वो महफ़िल उठ गई जिस दम तो मुझ तक दौर-ए-जाम आया
दिया ‘इक़बाल’ ने हिन्दी मुसलमानों को सोज़ अपना
ये इक मर्द-ए-तन-आसाँ था तन-आसानों के काम आया
उसी ‘इक़बाल’ की मैं जुस्तुजू करता रहा बरसों
बड़ी मुद्दत के बाद आख़िर वो शाहीं जे़र-ए-दाम आया
❤️❤️❤️❤️❤️
दयारे-इश्क़ में अपना मुक़ाम पैदा कर
अपने पुत्र के लिए लंदन से भेजा गया उनका पहला ख़त
दयारे-इश्क़ में अपना मुक़ाम पैदा कर
नया ज़माना नए सुब्ह-ओ-शाम पैदा कर
ख़ुदा अगर दिले-फ़ितरत-शनास दे तुझको
सुकूते-लाल-ओ-गुल से कलाम पैदा कर
उठा न शीशा-गराने-फ़िरंग के अहसाँ
सिफ़ाले-हिन्द से मीना-ओ-जाम पैदा कर
मैं शाख़े-ताक़ हूँ मेरी ग़ज़ल है मेरा समर
मिरे समर से मय-ए- लालाफ़ाम पैदा कर
मिरा तरीक़ अमीरी नहीं फ़क़ीरी है
ख़ुदी न बेच ग़रीबी में नाम पैदा कर
❤️❤️❤️❤️❤️
न तू ज़मीं के लिए है न आसमाँ के लिए
न तू ज़मीं के लिए है न आसमाँ के लिए
जहाँ है तेरे लिए तू नहीं जहाँ के लिए
ये अक़्ल ओ दिल हैं शरर शोला-ए-मोहब्बत के
वे ख़ार ओ ख़स के लिए है ये नीस्ताँ के लिए
मक़ाम-ए-परवरिश-ए-आह-ओ-लाला है ये चमन
न सैर-ए-गुल के लिए है न आशियाँ के लिए
रहेगा रावी ओ नील ओ फ़ुरात में कब तक
तेरा सफ़ीना के है बहर-ए-बे-कराँ के लिए
निशान-ए-राह दिखाते थे जो सितारों को
तरस गए हैं किसी मर्द-ए-राह-दाँ के लिए
निगह बुलंद सुख़न दिल-नवाज़ जाँ पुर-सोज़
यही है रख़्त-ए-सफ़र मीर-ए-कारवाँ के लिए
ज़रा सी बात थी अँदेशा-ए-अजम ने उसे
बढ़ा दिया है फ़क़त ज़ेब-ए-दास्ताँ के लिए
मेरे गुलू में है इक नग़मा जिब्राईल-आशोब
सँभाल कर जिसे रक्खा है ला-मकाँ के लिए
❤️❤️❤️❤️❤️
सच कह दूँ ऐ ब्रह्मन गर तू बुरा न माने
सच कह दूँ ऐ ब्रह्मन गर तू बुरा न माने
तेरे सनम कदों के बुत हो गये पुराने
अपनों से बैर रखना तू ने बुतों से सीखा
जन्ग-ओ-जदल सिखाया वाइज़ को भी ख़ुदा ने
तन्ग आके आख़िर मैं ने दैर-ओ-हरम को छोड़ा
वाइज़ का वाज़ छोड़ा, छोड़े तेरे फ़साने
पत्थर की मूरतों में समझा है तू ख़ुदा है
ख़ाक-ए-वतन का मुझ को हर ज़र्रा देवता है
आ ग़ैरत के पर्दे इक बार फिर उठा दें
बिछड़ों को फिर मिला दें नक़्श-ए-दुई मिटा दें
सूनी पड़ी हुई है मुद्दत से दिल की बस्ती
आ इक नया शिवाला इस देस में बना दें
दुनिया के तीरथों से ऊँचा हो अपना तीरथ
दामान-ए-आस्माँ से इस का कलस मिला दें
हर सुबह मिल के गायें मन्तर वो मीठे मीठे
सारे पुजारियों को मै पीत की पिला दें
शक्ती भी शान्ती भी भक्तों के गीत में है
धरती के बासियों की मुक्ती प्रीत में है
❤️❤️❤️❤️❤️
तिरे इश्क की इंतहा चाहता हूँ
तिरे इश्क़ की इंतहा चाहता हूँ
मिरी सादगी देख, क्या चाहता हूँ
सितम हो कि हो वादा-ए-बेहिजाबी
कोई बात सब्र-आज़मा चाहता हूँ
वो जन्नत मुबारक रहे ज़ाहिदों को
कि मैं आपका सामना चाहता हूँ
कोई दम का मेहमाँ हूँ ऎ अहले-महफ़िल
चिराग़े-सहरहूँ बुझा चाहता हूँ
भरी बज़्म में राज़ की बात कह दी
बड़ा बे-अदब हूँ सज़ा चाहता हूँ
❤️❤️❤️❤️❤️
गुलज़ारे-हस्ती-बूद न बेगानावार देख
गुलज़ारे-हस्ती-बूद न बेगानावार देख
है देखने की चीज़, इसे बार-बार देख
आया है तू जहाँ में मिसाले-शरार देख
दम दे न जाए हस्ती-ए-नापायादार देख
माना कि तेरी दीद के क़ाबिल नहीं हूँ मैं
तू मेरा शौक़ देख, मेरा इंतिज़ार देख
शब्दार्थ :
गुलज़ारे-हस्ती-बूद न बेगानावार देख=जीवन के बग़ीचे को उदासीन नज़र से न देख; मिसाले-शरार=चिंगारी की भाँति; हस्ती-ए-नापायादार=नाशवान जीवन; दीद=देखने
❤️❤️❤️❤️❤️
जुगनू
सुनाऊँ तुम्हे बात एक रात की,
कि वो रात अन्धेरी थी बरसात की,
चमकने से जुगनु के था इक समा,
हवा में उडें जैसे चिनगारियाँ।
पड़ी एक बच्चे की उस पर नज़र,
पकड़ ही लिया एक को दौड़ कर।
चमकदार कीडा जो भाया उसे,
तो टोपी में झटपट छुपाया उसे।
तो ग़मग़ीन क़ैदी ने की इल्तेज़ा,
’ओ नन्हे शिकारी, मुझे कर रिहा।
ख़ुदा के लिए छोड़ दे, छोड़ दे,
मेरे क़ैद के जाल को तोड दे।
-”करूंगा न आज़ाद उस वक़्त तक,
कि देखूँ न दिन में तेरी मैं चमक।”
-”चमक मेरी दिन में न पाओगे तुम,
उजाले में वो तो हो जाएगी गुम।
न अल्हडपने से बनो पायमाल -
समझ कर चलो- आदमी की सी चाल।”
❤️❤️❤️❤️❤️
बच्चों की दुआ
लब पे' आती है दुआ बन के तमन्ना मेरी,
ज़िन्दगी शमा की सूरत हो ख़ुदाया मेरी ।
दूर दुनिया का मेरे दम से अंधेरा हो जाए
हर जगह मेरे चमकने से उजाला हो जाए ।
हो मेरे दम से यूँ ही वतन की ज़ीनत,
जिस तरह फूल से होती है चमन की ज़ीनत ।
ज़िन्दगी हो मेरी परवाने की सूरत या रब !
इल्म की शमा से हो मुझ को मुहब्बत या रब !
हो मेरा काम ग़रीबों की हिमायत करना,
दर्दमंदों से, ज़ईफ़ों से मुहब्बत करना ।
मेरे अल्लाह, बुराई से बचाना मुझ को,
नेक जो राह हो, उस रह पे' चलाना मुझ को ।
शब्दार्थ :
शमा की सूरत=दीपक की भाँति; ज़ीनत=शोभा; इल्म की शमा=ज्ञान का दीपक; ज़ईफ़ों=बूढ़े लोगों
❤️❤️❤️❤️❤️
राम
लबरेज़ है शराबे-हक़ीक़त से जामे-हिन्द
सब फ़ल्सफ़ी हैं खित्ता-ए-मग़रिब के रामे हिन्द
ये हिन्दियों के फिक्रे-फ़लक उसका है असर,
रिफ़अत[4] में आस्माँ से भी ऊँचा है बामे-हिन्द
इस देश में हुए हैं हज़ारों मलक सरिश्त
मशहूर जिसके दम से है दुनिया में नामे-हिन्द
है राम के वजूद पे हिन्दोस्ताँ को नाज़,
अहले-नज़र समझते हैं उसको इमामे-हिन्द
एजाज़ इस चिराग़े-हिदायत, का है यही
रोशन तिराज़ सहर ज़माने में शामे-हिन्द
तलवार का धनी था, शुजाअत में फ़र्द था,
पाकीज़गी में, जोशे-मुहब्बत में फ़र्द था
❤️❤️❤️❤️❤️
जमहूरियत
इस राज़ को इक मर्दे-फ़िरंगी ने किया फ़ाश
हरचंद कि दाना इसे खोला नही करते
जमहूरियत इक तर्ज़े-हुकूमत है कि जिसमें
बन्दों को गिना करते है तोला नहीं करते
❤️❤️❤️❤️❤️
परवाना और जुगनू
परवाना
परवाने की मंज़िल से बहुत दूर है जुगनू
क्यों आतिशे-बेसूद से मग़रूर है जुगनू
जुगनू
अल्लाह का सो शुक्र कि परवाना नहीं मैं
दरयूज़ागरे-आतिशे-बेगाना नहीं मैं
मेरा गुनाह मुआफ़
मैं भी हाज़िर था वहाँ ज़ब्ते-सुख़न कर न सका
हक़ से जब हज़रते- मुल्ला को मिले हुक़्मे-बहिश्त
अर्ज़ की मैंने इलाही मेरी तक़सीर मुआफ़
ख़ुश न आएँगे इसे हूरो-शराबो-लबे-ख़िश्त
नहीं फिरदौस मुक़ामे-जदलो-क़ाल-ओ-मुक़ाल
बहसो-तकरार इस अल्लाह के बन्दे की सरिश्त
है बदआमोज़ी-ए-अक़वामो-मलल काम इसका
और जन्नत में न मस्जिद, न कलीसा न कनिश्त
❤️❤️❤️❤️❤️
साक़ी
नशा पिला के गिराना तो सबको आता है,
मज़ा तो तब है कि गिरतों को थाम ले साक़ी।
जो बादाकश थे पुराने वे उठते जाते हैं
कहीं से आबे-बक़ाए-दवाम ले साक़ी।
कटी है रात तो हंगामा-गुस्तरीं में तेरी,
सहर क़रीब है अल्लाह का नम ले साक़ी।
❤️❤️❤️❤️❤️
हकी़क़ते-हुस्न
ख़ुदा से हुस्न ने इक रोज़ ये सवाल किया
जहाँ में क्यों ना मुझे तुने लाज़वाल किया।
मिला जवाब के तस्वीरख़ाना है दुनिया
शबे-दराज़ अदम का फसाना है दुनिया।
है रंगे-तगय्युर से जब नमूद इसकी
वही हसीन है हक़ीकत ज़वाल है इसकी।
कहीं क़रीब था, ये गुफ्तगू क़मर ने सुनी
फ़लक पे आम हुवी, अख्तरे-सहर ने सुनी।
सहर ने तारे से सुनकर सुनायी शबनम को
फ़लक की बात बता दी ज़मीं के महरम को।
भर आये फूलके आँसू पयामे-शबनम से
कली का नन्हा-सा दिल खून हो गया ग़म से।
चमन से रोता हुवा मौसमे-बहार गया
शबाब सैर को आया था सोग़वार गया।
❤️❤️❤️❤️❤️
ज़मीं-ओ-आसमाँ मुमकिन है
मुमकिन है के तु जिसको समझता है बहाराँ
औरों की निगाहों में वो मौसम हो ख़िज़ाँ का
है सिल-सिला एहवाल का हर लहजा दगरगूँ
अए सालेक-रह फ़िक्र न कर सूदो-ज़याँ का
शायद के ज़मीँ है वो किसी और जहाँ की
तू जिसको समझता है फ़लक अपने जहाँ का
❤️❤️❤️❤️❤️
तू अभी रहगुज़र में है
तू अभी रहगुज़र में है क़ैद-ए-मकाम से गुज़र
मिस्र-ओ-हिजाज़ से गुज़र, पारेस-ओ-शाम से गुज़र
जिस का अमाल है बे-गरज़, उस की जज़ा कुछ और है
हूर-ओ-ख़याम से गुज़र, बादा-ओ-जाम से गुज़र
गर्चे है दिलकुशा बहोत हुस्न-ए-फ़िरन्ग की बहार
तायरेक बुलंद बाल दाना-ओ-दाम से गुज़र
कोह शिग़ाफ़ तेरी ज़रब तुझसे कुशाद शर्क़-ओ-ग़रब
तेज़े-हिलाहल की तरह ऐश-ओ-नयाम से गुज़र
तेरा इमाम बे-हुज़ूर, तेरी नमाज़ बे-सुरूर
ऐसी नमज़ से गुज़र, ऐसे इमाम से गुज़र
❤️❤️❤️❤️❤️
तेरे इश्क़ की इन्तहा चाहता हूँ
तेरे इश्क़ की इन्तहा चाहता हूँ
मेरी सादगी देख क्या चाहता हूँ
सितम हो कि हो वादा-ए-बेहिजाबी
कोई बात सब्र-आज़मा चाहता हूँ
ये जन्नत मुबारक रहे ज़ाहिदों को
कि मैं आप का सामना चाहता हूँ
कोई दम का मेहमाँ हूँ ऐ अहल-ए-महफ़िल
चिराग़-ए-सहर हूँ, बुझा चाहता हूँ
भरी बज़्म में राज़ की बात कह दी
बड़ा बे-अदब हूँ, सज़ा चाहता हूँ
❤️❤️❤️❤️❤️
सितारों से आगे जहाँ और भी हैं
सितारों के आगे जहाँ और भी हैं
अभी इश्क़के इम्तिहाँ और भी हैं
तही ज़िन्दगी से नहीं ये फ़ज़ायें
यहाँ सैकड़ों कारवाँ और भी हैं
क़ना'अतन कर आलम-ए-रंग-ओ-बू[4]पर
चमन और भी, आशियाँ और भी हैं
अगर खो गया एक नशेमन तो क्या ग़म
मक़ामात-ए-आह-ओ-फ़ुग़ाँ और भी हैं
तू शाहीं है परवाज़ है काम तेरा
तेरे सामने आसमाँ और भी हैं
इसी रोज़-ओ-शब में उलझ कर न रह जा
के तेरे ज़मीन-ओ-मकाँ और भी हैं
गए दिन के तन्हा था मैं अंजुमन में
यहाँ अब मेरे राज़दाँ और भी हैं
❤️❤️❤️❤️❤️
नया शिवाला
सच कह दूँ ऐ बिरहमन गर तू बुरा न माने
तेरे सनमकदों के बुत हो गये पुराने
अपनों से बैर रखना तू ने बुतों से सीखा
जंग-ओ-जदल सिखाया वाइज़ को भी ख़ुदा ने
तंग आके मैंने आख़िर दैर-ओ-हरम को छोड़ा
वाइज़ का वाज़ छोड़ा, छोड़े तेरे फ़साने
पत्थर की मूरतों में समझा है तू ख़ुदा है
ख़ाक-ए-वतन का मुझ को हर ज़र्रा देवता है
आ ग़ैरियत के पर्दे इक बार फिर उठा दें
बिछड़ों को फिर मिला दें नक़्श-ए-दुई मिटा दें
सूनी पड़ी हुई है मुद्दत से दिल की बस्ती
आ इक नया शिवाला इस देस में बना दें
दुनिया के तीरथों से ऊँचा हो अपना तीरथ
दामान-ए-आस्माँ से इस का कलस मिला दें
हर सुबह मिल के गायें मन्तर वो मीठे- मीठे
सारे पुजारियों को मय प्रीत की पिला दें
शक्ती भी शान्ती भी भक्तों के गीत में है
❤️❤️❤️❤️❤️
नहीं मिन्नत-कश-ए-ताब-ए-शनीदन दास्ताँ मेरी
नहीं मिन्नत-कश-ए-ताब-ए-शनीदन दास्ताँ मेरी
ख़ामोशी गुफ़्तगू है, बेज़ुबानी है ज़बाँ मेरी
ये दस्तूर-ए-ज़बाँ-बंदी है कैसी तेरी महफ़िल में
यहाँ तो बात करने को तरस्ती है ज़बाँ मेरी
उठाये कुछ वरक़ लाला ने कुछ नरगिस ने कुछ गुल ने
चमन में हर तरफ़ बिखरी हुई है दास्ताँ मेरी
उड़ा ली कुमरियों ने तूतियों ने अंदलीबों ने
चमन वालों ने मिल कर लूट ली तर्ज़-ए-फ़ुगाँ मेरी
टपक ऐ शम आँसू बन के परवाने की आँखों से
सरापा दर्द हूँ हसरत भरी है दास्ताँ मेरी
इलाही फिर मज़ा क्या है यहाँ दुनिया में रहने का
हयात-ए-जाविदाँ मेरी न मर्ग-ए-नागहाँ मेरी
❤️❤️❤️❤️❤️
मुहब्बत का जुनूँ बाक़ी नहीं है
मोहब्बत क जुनूँ बाक़ी नहीं है
मुसलमानों में ख़ून बाक़ी नहीं है
सफ़ें कज, दिल परेशन, सज्दा बेज़ूक
के जज़बा-ए-अंद्रून बाक़ी नहीं है
रगों में लहू बाक़ी नहीं है
वो दिल, वो आवाज़ बाक़ी नहीं है
नमाज़-ओ-रोज़ा-ओ-क़ुर्बानी-ओ-हज
ये सब बाक़ी है तू बाक़ी नहीं है
❤️❤️❤️❤️❤️
अनोखी वज़्अ है सारे ज़माने से निराले हैं
अनोखी वज़्अ है सारे ज़माने से निराले हैं
ये आशिक़ कौन-सी बस्ती के यारब रहने वाले हैं
इलाजे-दर्द में भी दर्द की लज़्ज़त पे मरता हूँ
जो थे छालों में काँटे नोक-ए-सोज़ाँ से निकाले हैं
फला फूला रहे यारब चमन मेरी उम्मीदों का
जिगर का ख़ून दे दे के ये बूटे मैने पाले हैं
रुलाती है मुझे रातों को ख़ामोशी सितारों की
निराला इश्क़ है मेरा निराले मेरे नाले हैं
न पूछो मुझसे लज़्ज़त ख़ानुमाँ-बरबाद रहने की
नशेमन सैंकड़ों मैंने बनाकर फूँक डाले हैं
नहीं बेग़ानगी अच्छी रफ़ीक़े-राहे-मंज़िल से
ठहर जा ऐ शरर हम भी तो आख़िर मिटने वाले हैं
उमीदे-हूर ने सब कुछ सिखा रक्खा है वाइज़ को
ये हज़रत देखने में सीधे-सादे भोले-भाले हैं
मेरे अश्आर ऐ इक़बाल क्यों प्यारे न हों मुझको
मेरे टूटे हुए दिल के ये दर्द-अंगेज़ नाले हैं
❤️❤️❤️❤️❤️
क्या कहूँ अपने चमन से मैं जुदा क्योंकर हुआ
क्या कहूँ अपने चमन से मैं जुदा क्योंकर हुआ
और असीरे-हल्क़ा-ए-दामे-हवा क्योंकर हुआ
जाए हैरत है बुरा सारे ज़माने का हूँ मैं
मुझको यह ख़िल्लत शराफ़त का अता क्योंकर हुआ
कुछ दिखाने देखने का था तक़ाज़ा तूर पर
क्या ख़बर है तुझको ऐ दिल फ़ैसला क्योंकर हुआ
देखने वाले यहाँ भी देख लेते हैं तुझे
फिर ये वादा हश्र का सब्र-आज़मा क्योंकर हुआ
तूने देखा है कभी ऐ दीदा-ए-इबरत कि गुल
हो के पैदा ख़ाक से रगीं-क़बा क्योंकर हुआ
मौत का नुस्ख़ा अभी बाक़ी है ऐ दर्दे-फ़िराक़
चारागर दीवाना है मैं लादवा क्योंकर हुआ
पुरसशे-आमाल से मक़सद था रुस्वाई मेरी
वर्ना ज़ाहिर था सभी कुछ क्या हुआ क्योंकर हुआ
मेरे मिटने का तमाशा देखने की चीज़ थी
क्या बताऊँ मेरा उनका सामना क्योंकर हुआ
❤️❤️❤️❤️❤️
जब इश्क़ सताता है आदाबे-ख़ुदागाही
जब इश्क़ सिखाता है आदाब-ए-ख़ुद-आगाही
खुलते हैं ग़ुलामों पर असरार-ए-शहंशाही
'अत्तार' हो 'रूमी' हो 'राज़ी' हो 'ग़ज़ाली' हो
कुछ हाथ नहीं आता बे-आह-सहर-गाही
नौमीद न हो इन से ऐ रह-बर-ए-फ़रज़ाना
कम-कोश तो हैं लेकिन बे-ज़ौक़ नहीं राही
ऐ ताएर-ए-लाहूती उस रिज़्क़ से मौत अच्छी
जिस रिज़्क़ से आती हो परवाज़ में कोताही
दारा ओ सिकंदर से वो मर्द-ए-फ़क़ीर औला
हो जिसकी फ़क़ीरी में बू-ए-असदूल-लाही
आईन-ए-जवां मर्दां हक़-गोई ओ बे-बाकी
अल्लाह के शेरों को आती नहीं रूबाही
❤️❤️❤️❤️❤️
ख़िरदमंदों से क्या पूछूँ कि मेरी इब्तिदा क्या है
ख़िरदमन्दों से क्या पूछूँ कि मेरी इब्तिदा क्या है
कि मैं इस फ़िक्र में रहता हूँ मेरी इंतिहा क्या है
ख़ुदी को कर बुलन्द इतना कि हर तक़दीर से पहले
ख़ुदा बन्दे से ख़ुदपूछे बता तेरी रज़ा क्या है
मुक़ामे-गुफ़्तगू[ क्या है अगर मैं कीमियागर हूँ
यही सोज़े-नफ़स है, और मेरी कीमिया क्या है
नज़र आईं मुझे तक़दीर की गहराइयाँ इसमें
न पूछ ऐ हमनशीं मुझसे वो चश्मे-सुर्मा-सा क्या है
नवा-ए-सुबह-गाही ने जिगर ख़ूँ कर दिया मेरा
ख़ुदाया जिस ख़ता की यह सज़ा है वो ख़ता क्या है
❤️❤️❤️❤️❤️
चमक तेरी अयाँ बिजली में आतिश में शरारे में
चमक तेरी अयाँ बिजली में आतिश में शरारे में
झलक तेरी हवेदा चाँद में सूरज में तारे में
बुलन्दी आसमानों में ज़मीनों में तेरी पस्ती
रवानी बह्र में उफ़्तादगी तेरी किनारों में
जो है बेदार इन्साँ में वो गहरी नींद सोता है
शजर में फूल में हैवान में पत्थर में तारे में
मुझे फूँका है सोज़े-क़तरा-ए-अश्क-ए-महब्बत ने
ग़ज़ब की आग थी पानी के छोटे-से शरारे में
नहीं जिन्से-सवाबे-आख़रत की आरज़ू मुझको
वो सौदागर हूँ मैंने नफ़्आ देखा है ख़सारे में
सकूँ ना-आश्ना रहना इसे सामाने-हस्ती है
तड़प इस दिल की यारब छिप के आ बैठी है पारे में
सदा-ए-लनतरानी सुन के ऐ इक़बाल मैं चुप हूँ
तक़ाज़ों की कहाँ ताक़त है मुझ फ़ुरक़त के मारे में
❤️❤️❤️❤️❤️
लब पे आती है दुआ बन के तमन्ना मेरी
लब पे आती है दुआ बनके तमन्ना मेरी
ज़िन्दगी शमअ की सूरत हो ख़ुदाया मेरी
दूर दुनिया का मेरे दम अँधेरा हो जाये
हर जगह मेरे चमकने से उजाला हो जाये
हो मेरे दम से यूँ ही मेरे वतन की ज़ीनत
जिस तरह फूल से होती है चमन की ज़ीनत
ज़िन्दगी हो मेरी परवाने की सूरत या रब
इल्म की शमअ से हो मुझको मोहब्बत या रब
हो मेरा काम ग़रीबों की हिमायत करना
दर्द-मंदों से ज़इफ़ों से मोहब्बत करना
मेरे अल्लाह बुराई से बचाना मुझको
नेक जो राह हो उस राह पे चलाना मुझको
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ख़ुदा का फ़रमान
उट्ठो मेरी दुनिया के ग़रीबों को जगा दो
ख़ाक-ए-उमरा के दर-ओ-दीवार हिला दो
गर्माओ ग़ुलामों का लहू सोज़-ए-यक़ीं से
कुन्जिश्क-ए-फिरोमाया को शाहीं से लड़ा दो
सुल्तानी-ए-जमहूर का आता है ज़माना
जो नक़्श-ए-कुहन तुम को नज़र आये मिटा दो
जिस खेत से दहक़ाँ को मयस्सर नहीं रोज़ी
उस ख़ेत के हर ख़ोशा-ए-गुन्दम को जला दो
क्यों ख़ालिक़-ओ-मख़लूक़ में हायल रहें पर्दे
पीरान-ए-कलीसा को कलीसा से हटा दो
मैं नाख़ुश-ओ-बेज़ार हूँ मरमर के सिलों से
मेरे लिये मिट्टी का हरम और बना दो
तहज़ीब-ए-नवीं कारगह-ए-शीशागराँ है
आदाब-ए-जुनूँ शायर-ए-मशरिक़ को सिखा दो
❤️❤️❤️❤️❤️
ख़िरद के पास ख़बर के सिवा कुछ और नहीं
ख़िरद के पास ख़बर के सिवा कुछ और नहीं
तेरा इलाज नज़र के सिवा कुछ और नहीं
हर इक मुक़ाम से आगे मुक़ाम है तेरा
हयात ज़ौक़-ए-सफ़र के सिवा कुछ और नहीं
रंगो में गर्दिश-ए-ख़ूँ है अगर तो क्या हासिल
हयात सोज़-ए-जिगर के सिवा कुछ और नहीं
उरूस-ए-लाला मुनासिब नहीं है मुझसे हिजाब
कि मैं नसीम-ए-सहर के सिवा कुछ और नहीं
जिसे क़साद समझते हैं ताजरन-ए-फ़िरन्ग
वो शय मता-ए-हुनर के सिवा कुछ् और नहीं
गिराँबहा है तो हिफ़्ज़-ए-ख़ुदी से है वरना
गौहर में आब-ए-गौहर के सिवा कुछ और नहीं
❤️❤️❤️❤️❤️
जिन्हें मैं ढूँढता था आसमानों में ज़मीनों में
जिन्हें मैं ढूँढता था आस्मानों में ज़मीनों में
वो निकले मेरे ज़ुल्मतख़ाना-ए-दिल के मकीनों में
अगर कुछ आशना होता मज़ाक़े- जिबहसाई से
तो संगे-आस्ताने-काबा जा मिलता जबीनों से
कभी अपना भी नज़्ज़ारा किया है तूने ऐ मजनूँ !
कि लैला की तरह तू भी तो है महमिलनशीनों में
महीने वस्ल के घड़ियों की सूरत उड़ते जाते हैं
मगर घड़ियाँ जुदाई की गुज़रती है महीनों में
मुझे रोकेगा तू ऐ नाख़ुदा क्या ग़र्क़ होने से
कि जिन को डूबना है डूब जाते हैं सफ़ीनों में
जला सकती है शम्म -ए-कुश्ता को मौज-ए-नफ़स उन की
इलाही क्या छुपा होता है अहल-ए-दिल के सीनों में
तमन्ना दर्द-ए-दिल की हो तो कर ख़िदमत फ़क़ीरों की
नहीं मिलता ये गौहर बादशाहों के ख़ज़ीनों में
न पूछ इन ख़िर्क़ापोशों की इरादत हो तो देख उनको
यदे-बैज़ा लिए बैठे हैं ज़ालिम आस्तीनों में
नुमायाँ हो के दिखला दे कभी इनको जमाल अपना
बहुत मुद्दत से चर्चे हैं तेरे बारीक बीनों के
महब्बत के लिये दिल ढूँढ कोई टूटने वाला
ये वो मै है जिसे रखते हैं नाज़ुक आबगीनों में
ख़मोश ऐ दिल भरी महफिल में चिल्लाना नहीं अच्छा
अदब पहला क़रीना है महब्बत के क़रीनों में
किसी ऐसे शरर से फूँक अपने ख़िरमने-दिल को
कि ख़ुर्शीदे-क़यामत भी हो तेरे ख़ोश्हचीनों में
बुरा समझूँ उन्हें मुझ से तो ऐसा हो नहीं सकता
कि मैं ख़ुद भी तो हूँ "इक़बाल" अपने नुक्ताचीनों में
❤️❤️❤️❤️❤️
हम मश्रिक़ के मुसलमानों का दिल
हम मशरिक़ के मुसलमानों का दिल मग़रिब में जा अटका है
वहाँ कुंतर सब बिल्लोरी है, यहाँ एक पुराना मटका है
इस दौर में सब मिट जायेंगे, हाँ बाक़ी वो रह जायेगा
जो क़ायम अपनी राह पे है, और पक्का अपनी हट का है
अए शैख़-ओ-ब्रह्मन सुनते हो क्या अह्ल-ए-बसीरत कहते हैं
गर्दों ने कितनी बुलंदी से उन क़ौमों को दे पटका है
❤️❤️❤️❤️❤️
गेसू-ए- ताबदार को और भी ताबदार कर
गेसू-ए- ताबदार को और भी ताबदार कर
होश-ओ-ख़िराद शिकर कर क़ल्ब-ओ-नज़र शिकर कर
तू है महीत-ए-बेकराँ मैं ज़रा सी आबजू
या मुझे हम-किनार कर या मुझे बे-किनार कर
मैं हूँ सदफ़ तो तेरे हाथ मेरे गौहर की आबरू
मैं हूँ ख़ज़फ़ तो तू मुझे गौहर-ए-शाहवार कर
नग़्मा-ए-नौबहार अगर मेरे नसीब में न हो
इस दम ए नीम सोज़ को ताइराक-ए-बहार कर
इश्क़ भी हो हिजाब में हुस्न भी हो हिजाब में
या तू ख़ुद आशकार हो या मुझ को आशकार कर
बाग़-ए-बहिश्त से मुझे हुक्म-ए-सफ़र दिया था क्योँ
कार-ए-जहाँ दराज़ है अब मेरा इन्तज़ार कर
रोज़-ए-हिसाब जब पेश हो मेरा दफ़्तर-ए-अमल
आप भी शर्मसार हो, मुझ को भी शर्मसार कर
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गुलज़ार-ए-हस्त-ओ-बू न बेगानावार देख
गुलज़ार-ए-हस्त-ओ-बू न बेगानावार देख
है देखने की चीज़ इसे बार बार देख
आया है तो जहाँ में मिसाल-ए-शरर देख
दम दे नजये हस्ती-ए-नापायेदार देख
माना के तेरी दीद के क़ाबिल नहीं हूँ मैं
तू मेरा शौक़ देख मेरा इंतज़ार देख
खोली हैं ज़ौक़-ए-दीद ने आँखें तेरी तो फिर
हर रहगुज़र में नक़्श-ए-कफ़-ए-पाय-ए-यार देख
❤️❤️❤️❤️❤️
अजब वाइज़ की दींदारी है या रब
अजब वाइज़ की दीन-दारी है या रब
अदावत है इसे सारे जहाँ से
कोई अब तक न ये समझा कि इंसाँ
कहाँ जाता है आता है कहाँ से
वहीं से रात को ज़ुल्मत मिली है
चमक तारों ने पाई है जहाँ से
हम अपनी दर्दमंदी का फ़साना
सुना करते हैं अपने राज़दाँ से
बड़ी बारीक हैं वाइज़ की चालें
लरज़ जाता है आवाज़-ए-अज़ाँ से
❤️❤️❤️❤️❤️
आता है याद मुझ को गुज़रा हुआ ज़माना
आता है याद मुझको गुज़रा हुआ ज़माना
वो बाग़ की बहारें, वो सब का चह-चहाना
आज़ादियाँ कहाँ वो, अब अपने घोसले की
अपनी ख़ुशी से आना अपनी ख़ुशी से जाना
लगती हो चोट दिल पर, आता है याद जिस दम
शबनम के आँसुओं पर कलियों का मुस्कुराना
वो प्यारी-प्यारी सूरत, वो कामिनी-सी मूरत
आबाद जिस के दम से था मेरा आशियाना
❤️❤️❤️❤️❤️
न आते हमें इसमें तकरार क्या थी
न आते हमें इसमें तकरार क्या थी
मगर वादा करते हुए आर[1]क्या थी
तुम्हारे पयामी[2] ने ख़ुद राज़ खोला
ख़ता इसमें बन्दे की सरकार क्या थी?
भरी बज़्म[3] में अपने आशिक़ को ताड़ा
तिरी आँख मस्ती में हुशियार क्या थी
तअम्मुल[4] तो था उनको आने में क़ासिद[5]
मगर ये बता तर्ज़े-इन्कार[6] क्या थी?
खिंचे ख़ुद-ब-ख़ुद जानिबे-तूर[7] मूसा
कशिश[8] तेरी ऐ शौक़े-दीदाए[9] क्या थी
कहीं ज़िक्र रहता है इक़बाल तेरा
फ़ुसूँ[10] था कोई तेरी गुफ़्तार[11] क्या थी
फिर चराग़े-लाला से रौशन हुए कोहो-दमन
फिर चराग़े-लाला से रौशन हुए कोहो-दमन[1]
मुझको फिर नग़्मों पे उकसाने लगा मुर्ग़े-चमन[2]
फूल हैं सहरा[3] में या परियाँ क़तार अन्दर क़तार[4]
ऊदे-ऊदे, नीले-नीले पीले-पीले पैरहन[5]
बर्गे-गुल[6] पर रख गई शबनम का मोती बादे-सुब्ह[7]
और चमकाती है उस मोती को सूरज की किरन
हुस्ने-बेपरवा को अपनी बेनक़ाबी के लिए
हों अगर शहरों से बन[8] प्यारे तो शहर अच्छे कि बन
अपने मन में डूबकर पा जा सुराग़े -ज़िन्दगी[9]
तू अगर मेरा नहीं बनता न बन अपना तो बन
मन की दुनिया, मन की दुनिया सूदो-मस्ती,जज़्बे-शौक़
तन की दुनिया तन की दुनिया सूदो-सौदा,मक्रो-फ़न[10]
पानी-पानी कर गई मुझको क़लन्दर की ये बात
तू झुका जब ग़ैर के आगे न मन तेरा न तन
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ज़माना आया है बेहिजाबी[1] का, आम दीदार-ए-यार होगा
सुकूत[2] था परदादार जिसका वो राज़ अब आशकार [3] होगा ।
गुज़र गया अब वो दौर साक़ी, कि छुप के पीते थे पीने वाले
बनेगा सारा जहां मयख़ाना हर कोई बादह्ख़ार[4] होगा
कभी जो आवारा-ए-जुनूँ थे वो बस्तियों में फिर आ बसेंगे
बरहना-पाई[5] वही रहेगी, मगर नया ख़ारज़ार [6] होगा ।
सुना दिया गोश-ए-मुन्तज़िर [7] को हिजाज़[8] का ख़ामोशी ने आखिर
जो अहद सहराइओं से बाँधा गया था फिर उस्तवार[9] होगा ।
निकल के सहरा से जिसने रोमां की सल्तनत को उलट दिया था
सुना है ये क़ुदसियों [10] से मैने, वो शेर फ़िर होशियार होगा ।
किया मेरा तज़किरा[11] जो साक़ी ने बादख़ारों की अंजुमन में
पीर-ए-मयख़ाना सुन के कहने लगा, मुंहफट है ख़ार होगा ।
दियार-ए-मग़रिब[12] के रहने वालों, ख़ुदा की बस्ती दुकाँ नहीं है
खरा जिसे तुम समझ रहे हो, ओ अब ज़र-ए-कम अयार होगा ।
तुम्हारी तहज़ीब[13] अपने ख़ंजर से आप ही ख़ुद्कुशी करेगी
जो शाख़े-नाज़ुक़[14] पे आशियाना बनेगा, नापाएदार[15] होगा ।
सफ़ीना-ए-बर्ग-ए-गुल बना लेगा काफ़िला नूर-ए-नातवाँ[16] का
हज़ार मौजों की हो कशाकश मगर ये दरिया से पार होगा ।
चमन में लाला[17] दिखाता फिरता है दाग़ अपना कली-कली को
ये जानता है कि इस दिखावे से दिलजलों में शुमार होगा ।
जो एक था ऐ निगाह तूने हमें हज़ार करके दिखाया
यही अगर कैफ़ियत हे तेरी तो किसे ऐतबार होगा ।
कहा जो कुमरी से मैने एक दिन यहाँ के आज़ाद पाबकिल हैं
तो गुन्चे[18] कहने लगे हमारे चमन का ये राज़दार होगा ।
ख़ुदा के बन्दे तो हैं हज़ारों बनो में फिरते हैं मारे-मारे
मैं उसका बन्दा बनूँगा जिसको ख़ुदा के बन्दों से प्यार होगा ।
ये रस्म-ए-बज़्म-ए-फ़ना है ऐ दिल, गुनाह है जुम्बिश[19]-ए-नज़र की
रहेगी क्या आबरु हमारी जो तू यहाँ बेक़रार होगा ।
मैं जुल्मत-ए-शब में लेके निकलूंगा अपने दरमांदा[20] कारवां को
शरर फसां होगी आह मेरी, नफ़स मेरा शोला बार होगा ।
नहीं है ग़ैर जुनूत कुछ भी मुद्दआ तेरी ज़िंदगी का
तो इक नफ़स में मिटना तुझे मिसाल-ए-शरार होगा ।
न पूछ इक़बाल का ठिकाना, अभी वही कैफ़ियत है उसकी
कहीं सर-ए-रहगुज़ार बैठा सितमकश-ए-इंतिज़ार होगा ।
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लेकिन मुझे पैदा किया उस देस में तूने
इक वलवला-ए-ताज़ा[1] दिया मैंने दिलों को
लाहौर से ता-ख़ाके-बुख़ारा-ओ-समरक़ंद[2]
लेकिन मुझे पैदा किया उस देस में तूने
जिस देस के बन्दे हैं ग़ुलामी पे रज़ामंद[3]
❤️❤️❤️❤️❤️
ख़ुदी में डूबने वालों
जहाने-ताज़ा[1] की अफ़कारे-ताज़ा[2] से है नमूद
कि संगो-ख़िश्त[3] से होते नहीं जहाँ पैदा
ख़ुदी में डूबने वालों के अज़्मो-हिम्मत[4] ने
इस आबे-जू[5]से किए बह्रे-बेकराँ[6]पैदा
❤️❤️❤️❤️❤️
नसीहत
बच्चा-ए-शाहीं[1] से कहता था उक़ाबे-साल -ख़ुर्द[2]
ऐ तिरे शहपर[3] पे आसाँ रिफ़अते- चर्ख़े-बरीं[4]
है शबाब[5]अपने लहू की आग मे जलने का काम
सख़्त-कोशी[6]से है तल्ख़े-ज़िन्दगानी[7]अंग-बीं[8]
जो कबूतर पर झपटने मे मज़ा है ऐ पिसर
वो मज़ा शायद कबूतर के लहू मे भी नहीं
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अक़्ल ने एक दिन ये दिल से कहा
अक़्ल ने एक दिन ये दिल से कहा
भूले-भटके की रहनुमा हूँ मैं
दिल ने सुनकर कहा-ये सब सच है
पर मुझे भी तो देख क्या हूँ मैं
राज़े-हस्ती[1] को तू समझती है
और आँखों से देखता हूँ मैं
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परीशाँ हो के मेरी ख़ाक आख़िर दिल न बन जाए
परीशाँ होके मेरी खाक आखिर दिल न बन जाये
जो मुश्किल अब हे या रब फिर वही मुश्किल न बन जाये
न करदें मुझको मज़बूरे नवा फिरदौस में हूरें
मेरा सोज़े दरूं फिर गर्मीए महेफिल न बन जाये
कभी छोडी हूई मज़िलभी याद आती है राही को
खटक सी है जो सीने में गमें मंज़िल न बन जाये
कहीं इस आलमें बे रंगो बूमें भी तलब मेरी
वही अफसाना दुन्याए महमिल न बन जाये
अरूज़े आदमे खाकी से अनजुम सहमे जातें है
कि ये टूटा हुआ तारा महे कामिल न बन जा
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सख़्तियाँ करता हूँ दिल पर ग़ैर से ग़ाफ़िल हूँ मैं
सख़्तियाँ करता हूँ दिल पर ग़ैर से ग़ाफ़िल हूँ मैं
हाय क्या अच्छी कही ज़ालिम हूँ मैं जाहिल हूँ मैं
है मेरी ज़िल्लत ही कुछ मेरी शराफ़त की दलील
जिस की ग़फ़लत को मलक रोते हैं वो ग़ाफ़िल हूँ मैं
बज़्म-ए-हस्ती अपनी आराइश पे तू नाज़ाँ न हो
तू तो इक तस्वीर है महफ़िल की और महफ़िल हूँ मैं
ढूँढता फिरता हूँ ऐ "इक़बाल" अपने आप को
आप ही गोया मुसाफ़िर आप ही मंज़िल हूँ मैं
❤️❤️❤️❤️❤️
एक आरज़ू
दुनिया की महफ़िलों से उकता गया हूँ या-रब
क्या लुत्फ़[1] अंजुमन[2] का जब दिल ही बुझ गया हो
शोरिश[3] से भागता हूँ दिल ढूँढता है मेरा
ऐसा सुकून[4] जिसपर तक़दीर[5] भी फ़िदा[6] हो
मरता हूँ ख़ामुशी पर यह आरज़ू है मेरी
दामन में कोह[7] के इक छोटा-सा झोंपड़ा हो
हो हाथ का सिरहाना सब्ज़े[8] का हो बिछौना
शरमाए जिससे जल्वत[9]ख़िलवत[10] में वो अदा हो
मानूस[11] इस क़दर हो सूरत से मेरी बुलबुल
नन्हे-से उसके दिल में खटका[12] न कुछ मिरा हो
आग़ोश[13] में ज़मीं की सोया हुआ हो सब्ज़ा[14]
फिर-फिर के झाड़ियों में पानी चमक रहा हो
पानी को छू रही हो झुक-झुक के गुल की टहनी
जैसे हसीन[15] कोई आईना देखता हो
फूलों को आए जिस दम शबनम[16] वज़ू[17] कराने
रोना मेरा वज़ू हो, नाला[18] मिरी दुआ हो
हर दर्दमंद दिल को रोना मेरा रुला दे
बेहोश जो पड़े हैं, शायद उन्हें रुला दे
❤️❤️❤️❤️❤️
अगर कज-रौ हैं अंजुम आसमाँ तेरा है या मेरा
अगर कज-रौ हैं अंजुम आसमाँ तेरा है या मेरा
मुझे फ़िक्र-ए-जहाँ क्यूँ हो जहाँ तेरा है या मेरा
अगर हँगामा-हा-ए-शौक़ से है ला-मकाँ ख़ाली
ख़ता किस की है या रब ला-मकाँ तेरा है या मेरा
उसे सुब्ह-ए-अज़ल इंकार की जुरअत हुई क्यूँकर
मुझे मालूम क्या वो राज़-दाँ तेरा है या मेरा
मोहम्मद भी तेरा जिब्रील भी क़ुरआन भी तेरा
मगर ये हर्फ़-ए-शीरीं तरजुमा तेरा है या मेरा
इसी कौकब की ताबानी से है तेरा जहाँ रौशन
ज़वाल-ए-आदम-ए-ख़ाकी ज़ियाँ तेरा है या मेरा
❤️❤️❤️❤️❤️
असर करे न करे सुन तो ले मेरी फ़रियाद
असर करे न करे सुन तो ले मेरी फ़रियाद
नहीं है दाद का तालिब ये बंद-ए-आज़ाद
ये मुश्त-ए-ख़ाक ये सरसर ये वुसअत-ए-अफ़लाक
करम है या के सितम तेरी लज़्ज़त-ए-ईजाद
ठहर सका न हवा-ए-चमन में ख़ेम-ए-गुल
यही है फ़स्ल-ए-बहारी यही है बाद-ए-मुराद
क़ुसूर-वार ग़रीब-उद-दयार हूँ लेकिन
तेरा ख़राबा फ़रिश्ते न कर सके आबाद
मेरी जफ़ा-तलबी को दुआएँ देता है
वो दश्त-ए-सादा वो तेरा जहान-ए-बे-बुनियाद
ख़तर-पसंद तबीअत को साज़-गार नहीं
वो गुलसिताँ के जहाँ घात में न हो सय्याद
मक़ाम-ए-शौक़ तेरे क़ुदसियों के बस का नहीं
उन्हीं का काम है ये जिन के हौसले हैं ज़ियाद
❤️❤️❤️❤️❤️
जिस खेत से दहक़ाँ को मयस्सर नहीं रोज़ी
उट्ठो मेरी दुनिया के ग़रीबों को जगा दो
ख़ाक-ए-उमरा के दर-ओ-दीवार हिला दो
गरमाओ ग़ुलामों का लहू सोज़-ए-यक़ीं से
कुन्जिश्क-ए-फिरोमाया को शाहीं से लड़ा दो
सुल्तानी-ए-जमहूर का आता है ज़माना
जो नक़्श-ए-कुहन तुम को नज़र आये मिटा दो
जिस खेत से दहक़ाँ को मयस्सर नहीं रोज़ी
उस ख़ेत के हर ख़ोशा-ए-गुन्दम को जला दो
क्यों ख़ालिक़-ओ-मख़लूक़ में हायल रहें पर्दे
पीरान-ए-कलीसा को कलीसा से हटा दो
मैं नाख़ुश-ओ-बेज़ार हूँ मरमर के सिलों से
मेरे लिये मिट्टी का हरम और बना दो
तहज़ीब-ए-नवीं कारगह-ए-शीशागराँ है
आदाब-ए-जुनूँ शायर-ए-मश्रिक़ को सिखा दो
❤️❤️❤️❤️❤️
लबरेज़ है शराब-ए-हक़ीक़त
लबरेज़ है शराब-ए-हक़ीक़त से जाम-ए-हिन्द
सब फ़लसफ़ी हैं ख़ित्त-ए-मग़रिब के राम-ए-हिन्द
ये हिन्दियों के फ़िक्र-ए-फ़लक रस का है असर
रिफ़त में आसमाँ से भी ऊँचा है बाम-ए-हिन्द
इस देस में हुए हैं हज़ारों मलक सरिश्त
मशहूर जिन के दम से है दुनिया में नाम-ए-हिन्द
है राम के वजूद पे हिन्दोस्ताँ को नाज
अहल-ए-नज़र समझते हैं इस को इमाम-ए-हिन्द
एजाज़ इस चिराग़-ए-हिदायत का है यही
रोशन तर अज सहर है ज़माने में शाम-ए-हिन्द
तलवार का धनी था, शुजाअत में फ़र्द था
पाकिज़गी में, जोश-ए-मोहब्बत में फ़र्द था
❤️❤️❤️❤️❤️
हर मुक़ाम से आगे मुक़ाम है तेरा
ख़िर्द के पास ख़बर के सिवा कुछ और नहीं
तेरा इलाज नज़र के सिवा कुछ और नहीं
हर मुक़ाम से आगे मुक़ाम है तेरा
हयात ज़ौक़-ए-सफ़र के सिवा कुछ और नहीं
रंगों में गर्दिश-ए-ख़ूँ है अगर तो क्या हासिल
हयात सोज़-ए-जिगर के सिवा कुछ और नहीं
उरूस-ए-लाला मुनासिब नहीं है मुझसे हिजाब
कि मैं नसीम-ए-सहर के सिवा कुछ और नहीं
जिसे क़ साद समझते हैं ताजरन-ए-फ़िरन्ग
वो शय मता-ए-हुनर के सिवा कुछ और नहीं
गिराँबहा है तो हिफ़्ज़-ए-ख़ुदी से है वरना
गौहर में आब-ए-गौहर के सिवा कुछ और नहीं
❤️❤️❤️❤️❤️
बड़े इसरार पोशीदा है इस तनहा पसंदी में
यह मत समझो के दीवाने जहनदीदा नहीं होते
ताजुब क्या अगर इक़बाल दुनिया तुझ से
नाखुश है बहुत से लोग दुनिया में पसंददीदा नहीं होते
देख कैसी क़यामत सी बरपा हुई है आशियानों
पर इक़बाल जो लहू से तामीर हुए थे ,पानी से बह गए
तेरे इश्क की इन्तहा चाहता हु मेरी सादगी
देख क्या चाहत हु भरी बज़्म में राज़ के
बात कह दी बड़ा बे अदब हु सजा चाहता हु
अमल से जिंदगी बनती है ,जन्नत भी जहनुम भी
यह कहा की अपनी फितरत मे न नूरी न नारी
पानी पानी कर गयी मुझको कलंदर की वो बात
तू झुका जो गैर के आगे न तन तेरा न मन तेरा
इक़रार-ए -मुहब्बत ऐहदे -ए -वफ़ा सब झूटी
सच्ची बाते "इक़बाल " हर शख्स खुदी की
मस्ती में बस अपने खातिर जीता है
इश्क क़ातिल से भी मक़तूल से हमदर्दी
भी यह बता किस से मुहब्बत की ज़ज़ा मांगेगा
सज़दा ख़ालिक को भी इब्लीस से याराना भी
हश्र में किस से अक़ीदत का सिला मागेगा
उम्र भर तेरी मुहब्बत तेरी मेरी खिदमत रही में
तेरी खिदमत के काबिल जब हुआ तो तू चल बसी
किसी के याद ने ज़ख्मो से भर दिया
सीना हर एक साँस पे शक है के आखरी होगी
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सितारों से आगे जहाँ और भी है
अभी इश्क के इम्तिहा और भी हैं
ताहि जिंदगी से नहीं यह फिज़ाए
यहां सैकड़ों कारवां और भी है
अगर खो गया एक नशेमन तो क्या गम
मकामात -ऐ -आह ओ फ़िगन और भी है
तू शाहीन है परवाज है काम तेरा
तेरे सामने आसमां और भी हैं
इसे रोज-ओ -शब में उलझ करन न रह जा
कह तेरे जमान-ओ - मका और भी हैं
गए दिन के तन्हा था मैं अंजुमन में
यहां अब मेरे राजदा और भी
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तस्कीन न हो जिस से वो राज़ बदल डालो
जो राज़ न रख पाए हमराज़ बदल डालो
तुम ने भी सुनी होगी बड़ी आम कहावत है
अंजाम का जो हो खतरा आगाज़ बदल डालो
पुरजोर दिलों को जो मुस्कान न दे पाए
सुर ही न मिले जिस में साज़ बदल डालो
दुश्मन के इरादों को है ज़ाहिर अगर करना
तुम खेल रही खेलो अंदाज बदल डालो
ऐ दोस्त करो हिम्मत कुछ दूर सवेरा है
अगर चाहते हो मंजिल तो बर्बाद बदल डाले